Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२९८] छक्खंडागमे जीवट्ठाण
[१, ४, ४६. . सत्थाणसत्थाणपरिणदेहि सम्मामिच्छादिटि-असंजदसम्मादिट्ठीहि तिण्हं लोगाणमसखेजदिभागो, तिरियलोगस्स संखेजदिभागो, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो पोसिदो । एसो 'वा' सद्दट्ठो । विहारवदिसत्थाण-वेदण-कसाय उव्यिय-मारणंतियसमुग्धादगदेहि असंजदसम्मादिट्ठीहि अट्ठ चोद्दसभागा देसूणा पोसिदा । उववादगदेहि छ चोद्दसभागा पोसिदा, अच्चुदकप्पादो उवरि मणुसवदिरित्ताणमुववादाभावा । एवं सम्मामिच्छदिट्ठीणं पि । णवरि मारणंतिय-उववादगदा णत्थि ।
भवणवासिय-वाणवेंतर-जोदिसियदेवेसु मिच्छादिट्टि-सासणसम्मादिट्ठीहि केवडियं खेत्तं पोसिदं, लोगस्स असंखेजदिभागो ॥ ४६॥
वाणवेंतर-जोदिसियमिच्छादिहि-सासणसम्मादिट्ठीणं खेत्तभंगो । भवणवासिय. मिच्छादिट्ठीहि सत्थाणसत्थाण-विहारवदिसत्थाण-वेदण-कसाय-वेउव्वियसमुग्धादगदेहि वट्टमाणकाले चदुहं लोगाणमसंखेजदिभागो पोसिदो। अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो । उववादपरिणदाणं पि एवं चेव वत्तव्यं । जदि वि एदं वट्टमसंखेज्जसे ढीमेतं, तो वि तिरिय
_स्वस्थानस्वस्थानपदपरिणत सम्यग्मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि देवोंने सामान्यलोक भादि तीन लोकोंका असंख्यातवां भाग, तिर्यग्लोकका संख्यातवां भाग और अढाईद्वीपसे भसंख्यातगुणा क्षेत्र स्पर्श किया है। यह 'वा' शब्दका अर्थ है । विहारवत्स्वस्थान, वेदना, कषाय, वैक्रियिक और मारणान्तिकसमुद्धातगत असंयतसम्यग्दृष्टि देवोंने कुछ कम आठ बटे धौदह (8) भाग स्पर्श किये हैं। उपपादपदगत असंयतसम्यग्दृष्टि देवोंने छह बटे चौदह (४) भाग स्पर्श किये हैं, क्योंकि, अच्युतकल्पसे ऊपर मनुष्योंको छोड़कर अन्य जीवोंके उत्पन्न होनेका अभाव है। इसी प्रकार सम्यग्मिध्यादृष्टि देवोंका भी स्पर्शन जानना चाहिए, विशेष बात यह है कि इनके मारणान्तिकसमुद्धात और उपपाद, ये दो पद नहीं होते हैं। . भवनवासी, वानव्यन्तर और ज्योतिष्क देवोंमें मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है॥४६॥
. वानप्यन्तर और ज्योतिष्क मिथ्यादृष्टि तथा सासादनसम्यग्दृष्टि देवोंका स्पर्शन क्षेत्रप्ररूपणाके समान है। स्वस्थानस्वस्थान, विहारवत्स्वस्थान, वेदना, कषाय और वैकियिकसमुदातगत भवनवासी मिथ्यादृष्टि देवोंने वर्तमानकालमें सामान्यलोक आदि चार लोकोंका असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है। तथा मनुष्यलोकसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पर्श किया है। उपपादपदपरिणत उक्त देवोंका भी इसी प्रकारसे स्पर्शनक्षेत्र कहना चाहिए । यद्यपि यह उपपादक्षेत्रसम्बन्धी मार्ग असंख्यात श्रेणीप्रमाण होता है, तथापि तिर्यग्लोकके असंख्या
१ प्रतिषु 'बब्ब-' इति पाठः।
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