Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
View full book text
________________
२३० छक्खंडागमै जीवट्ठाणं
[१, ४, ४७. देसूणा पोसिदा । उवरि सत्त, हेट्ठा दोण्णि, एवं णव रज्जू । उववादपरिणदेहि तिण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागो, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो । जोयणलक्खबाहल्लं तिरियपदरमदीदकाले किण्ण पुसिजदि ? ण, तिरिच्छेण भवणहिदपदेसं गंतूण हेट्ठा मुक्कमारणंतियाणमुववादेण हेदुवरिमासेसखेत्तफुसणाभावादो। पुणो कधं तिरियलोगस्त संखेजदिभागतं जुज्जदे ? सगावहिदपदेसादो हेट्ठा गंतूग तिरिच्छेण पल्लट्टिय सगभवणेसुप्पण्णाणं तिरियलोगस्स संखेजदिभागो उववादफोसणं होदि। अण्णहा किण्ण होदि ? भवणवासियपाओग्गाणुपुब्धिपडिबद्धागासपदेसाणमवट्ठाणवसेण मारणतियसंभवादो । भवणवासियसासणसम्मादिहिसव्वपदाणं भवणवासियमिच्छादिभिंगो। वाणवेंतरमिच्छाइट्ठि-सासणसम्मादिट्ठीहि सत्थाणेण तिण्हं लोगाणमसंखेजदिभागो, तिरियलोगस्स
विहार करते हैं। मारणान्तिकसमुद्धातगत उन्हीं भवनवासी देवोंने नौ बटे चौदह (२४) भाग स्पर्श किये हैं। मंदराचलसे ऊपर लोकके अन्त तक सात राजु और नीचे तीसरी पृथिवी तक दो राजु, इस प्रकार नौ राजु होते हैं । उपपादपरिणत उक्त देवोंने सामान्यलोक आदि तीन लोकोंका असंख्यातवां भाग, तिर्यग्लोकका संख्यातवां भाग और अढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पर्श किया है।
शंका-भवनवासी मिथ्यादृष्टि देवोंने अतीतकालमें एक लाख योजन बाहल्यवाला तिर्यक्प्रतरप्रमाण क्षेत्र क्यों नहीं स्पर्श किया है ?
समाधान-नहीं, क्योंकि, तिर्यग्रूपसे भवनस्थित प्रदेशको जाकर नीचे मारणान्तिकसमुद्धातको करनेवाले जीवोंके उपपादपदकी अपेक्षा नीचे और ऊपरके समस्त क्षेत्रको स्पर्शन करनेका अभाव है।
शंका-तो फिर भवनवासी देबोंके उपपादपदकी अपेक्षा तिर्यग्लोकका संख्यातवां भाग स्पर्शनक्षेत्र कैसे बन सकता है?
समाधान- अपने रहनेके स्थानसे नीचे जाकर पुनः तिरछे रूपसे पलट करके अपने भवनों में उत्पन्न होने वाले जीवोंका तिर्यग्लोकके संख्यातवें भागप्रमाण उपपादपदसम्बन्धी स्पर्शनक्षेत्र हो जाता है। · शंका-यह स्पर्शनक्षेत्र अन्य प्रकारसे क्यों नहीं होता है ?
समाधान-क्योंकि, भवनवासी देषों के योग्य आनुपूर्वीनामकर्मले प्रतिबद्ध भाकाश. प्रदेशों के अवस्थानके वशसे मारणान्तिकसमुदात होता है, इसलिए उक्त स्पर्शनक्षेत्र अन्य प्रकारसे नहीं बन सकता है।
भवनवासी सासादनसम्यग्दृष्टि देवोंके स्वस्थानादि सभी पदों का स्पर्शनक्षेत्र भवनवासी मिथ्याहा देवोंके समान है । मिथ्यादृष्टि और सालादनसम्यग्दृष्टि वानव्यन्तर देवोंने स्वस्थामस्वस्थानकी अपेक्षा सामान्यलोक भादि तनि कोकोंका असंख्यातवां भाग, तिर्य.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org