Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१४४ ]
छत्रखंडागमे जीवद्वाणं
[ १, ४, १.
गागभावस्व उवयारेण फांसववएसादो, सत्त-पमेयत्तादिणा अण्णोष्णसमाणत्तणेण वा । कालव्यस्त अण्णदव्वेहि जो संजोओ सो कालफोसणं णाम । एत्थ अमुत्तेण कालव्त्रेण सव्वाणं जदिवि पासो णत्थि, परिणामिज्जमाणाणि सेसदव्वाणि परिणामत्तेण कालेन पुसिदाणित्ति उवयारेण कालफोसणं बुच्चदे । खेत्त कालपोसणाणि दव्फोसणम्हि किण्ण पदंति चित्ते ण पदंति, दव्वादो दब्बेगदेसस्स कथंचि भेदुवलंभादो | भावफोसणं दुविहं आगम-णोआगमभेएण । फोसणपाहुडजाणओ उबजुत्तो आगमदो भावफोसणं । पासगुणपरिणदपोग्गलदव्वं गोआगमभाव कोसणं ।
एदेसु फोसणेसु जीवखेत्तफोसणेण पयदं । अस्पर्शिं स्पृश्यत इति स्पर्शनम् । फोसणस्स अणुगमो फोसणाणुगमो, तेण फोसणाणुगमेण । णिदेसो कहणं वक्खाणमिदि एडो । सो दुविहो, जहा पयई । ओवेण पिंडेण अभेदेणेत्ति एयट्ठो । आदेसेण भेदेण
समाधान- यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, अवगाह्य अवगाहकभावको ही उपचार से स्पर्शसंज्ञा प्राप्त है, अथवा, सत्त्व, प्रमेयत्व आदिके द्वारा मूर्त्त द्रव्यके साथ अमूर्त द्रव्योंकी परस्पर समानता होनेसे भी स्पर्शका व्यवहार बन जाता है ।
कालद्रव्यका अन्य द्रव्योंके साथ जो संयोग है, उसका नाम कालस्पर्शन है । यहां यद्यपि अमूर्त्त कालद्रव्य के साथ शेष द्रव्योंका स्पर्शन नहीं है, तथापि परिणमित होने वाले शेष द्रव्य परिणामत्वकी अपेक्षा कालसे स्पर्शित हैं, इस प्रकार के उपचार से कालस्पर्शन कहा जाता है ।
शंका- क्षेत्रस्पर्शन और कालस्पर्शन ये दोनों स्पर्शन, द्रव्यस्पर्शनमें क्यों नहीं अन्तर्भूत होते हैं ?
समाधान - ऐसी शंकापर उत्तर देते हैं कि क्षेत्रस्पर्शन और कालस्पर्शन द्रव्यस्पर्शन में अन्तर्भूत नहीं होते हैं, क्योंकि, द्रव्यसे द्रव्यके एक देशका कथंचित् भेद पाया जाता है ।
भावस्पर्शन आगम और नोआगमके भेद से दो प्रकारका है। स्पर्शनविषयक शास्त्र के शायक और वर्तमान में उसमें उपयुक्त जीवको आगमभावस्पर्शन कहते हैं । स्पर्शगुणसे परिणत पुलद्रव्य को नोआगमभावस्पर्शन कहते हैं ।
इन उक्त छह प्रकारके स्पर्शनों से यहांपर जीवद्रव्यसम्बन्धी क्षेत्रस्पर्शन से प्रयोजन है । जो भूतकाल में स्पर्श किया गया और वर्तमान में स्पर्श किया जा रहा है, वह स्पर्शन कहलाता है । स्पर्शन के अनुगमको स्पर्शनानुगम कहते हैं, उससे, अर्थात् स्पर्शनानुगमसे । निर्देश, कथन और व्याख्यान, ये तीनों एकार्थक नाम हैं। वह निर्देश प्रकृतिके निर्देश के समान दो प्रकारका होता है । ओघ, पिंड और अभेद, ये सब एकार्थक नाम है। आदेश, भेद
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