Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, ४, २५.] फोसणाणुगमे तिरिक्खफोसणपरूवणं सयंभुरमणसमुदस्स खेत्तफलं जगपदरस्स वासीदिभागो सादिरेगो होदि । एत्थ करणगाहा
सोलह सोलसहिं गुणे रूवूणोवहिसलागसंखा त्ति ।
दुगुणम्हि तम्हि सोहे चउक्कपहदं चउक्कं तु ॥ ६ ॥ संपदि सव्वसमुद्दाणं खेत्तफलसंकलणा वुच्चदे-लवणसमुदस्स एगा गुणगारसलागा, कालोदयसमुद्दस्स अट्ठावीस । एदेसि संकलणमाणिज्जमाणे 'रूपोनमादिसंगुणमेकोनगुणोन्मथितमिच्छा' एदेण अज्जाखंडेण आणेदव्वं । एगमादि कादूण सोलसगुणकमेण गदा त्ति
इन शलाकाओंसे लवणसमुद्र के क्षेत्रफलको गुणित करनेपर स्वयम्भूरमणसमुद्रका क्षेत्रफल जगप्रतरका साधिक व्यासीवां भाग आता है। इस विषयमें करणगाथा इसप्रकार है
विवक्षित समुद्रकी क्रमशलाकाकी संख्या से एक कम करके शेष संख्याके प्रमाण सोलहको सोलहसे गुणाकर उपलब्ध राशिको दूना कर दे और विरलन राशिप्रमाण चारको चारसे गुणाकर लब्धको उस द्विगुणित राशिमेसे घटा देने पर विवक्षित समुद्रकी गुणकारशलाकाएं आ जाती हैं ॥६॥
उदाहरण- सर्वद्वीप-समुद्रोंकी संख्या = २अ; सर्वसमुद्रोंकी संख्या = अ
- १ = र७२ (जगप्रतर) -
= ब; ब४२-२ब १०००००°४३१३६
४ - १. र७ • - - - = स; २ब-स = स्वयंभूरमणसमुद्र की गुणकारशलाका (२व - स) x ल. का क्षेत्रफल = स्वयंभूरमणसमुद्रका क्षेत्रफल = र
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अब सर्व समुद्रोंके क्षेत्रफलका संकलन कहते हैं-लवणसमुद्रकी गुणकारशलाका एक है, कालोदकसमुद्रकी गुणकारशलाकाएं अट्ठाईस है । इनका संकलन लानेके लिए उक्त प्रकारसे प्राप्त शलाकाओंमेले 'एक कम करके शेषको आदिसे गुणा करे और पुनः एक कम गुणकारशलाकाका भाग देनेसे इच्छित राशि उत्पन्न हो जाती है। इस आर्याखंडसे इच्छित संकलन ले आना चाहिए। चूंकि एकको आदि लेकर सोलह गुणितक्रमसे राशि बढ़ी है, इसलिए दो
- १ सयंभुरमणसमुद्दस्स खेत्तफलं जगसेढीए वगं णवरूवेहि गुणिय सत्तसदचउसीदिरूवेहिं भजिदमेतं पुणो एक्कलक्ख बारससहस्सपंचसयजोयणेहिं गुणिदरज्जूए अमहियं होदि । ति. प. पत्र १७१.
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