Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, ४, ३२.] फोसणाणुगमे तिारक्खफोसणपरूवणं
[२१३ सेसाणं तिरिक्खगदीणं भंगो ॥ ३१ ॥
सेसाणमिदि उत्ते सासणसम्मादिहि-सम्मामिच्छादिहि-असंजदसम्मादिद्वि-संजदासंजदा घेत्तव्वा, अण्णेसिमसंभवादो । एक्किस्से तिरिक्खगदीए तिरिक्खगदीणमिदि बहुत्तणिद्देसो कधं घडदे ? ण एस दोसो, एकिस्से वि तिरिक्खगदीए गुणट्ठाणादिभेएण बहुत्तविरोहाभावादो। एदेसि चदुण्हं गुणहाणाणं परूवणा वट्टमाणकाले खेत्तसमाणा । अदीदकाले एदेसि तिरिक्खोघपरूवणाए तुल्ला। णवरि जोणिणीसु असंजदसम्मादिट्ठीणं उववादो णत्थि, एत्तिओ चेव विसेसो ।
पंचिंदियतिरिक्खअपज्जत्तएहि केवडियं खेत्तं फोसिदं, लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ ३२॥
वट्टमाणकाले सत्थाण-वेदण-कसायपदे वट्टमाणपंचिंदियतिरिक्खअपज्जत्तएहि चदुण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो पोसिदो । मारणतियउववादपदेहि तिण्डं लोगाणमसंखेज्जदिभागो णर-तिरियलोगेहिंतो असंखेज्जगुणो ।
शेष तियंचगतिके जीवोंका स्पर्शनक्षेत्र ओघके समान है ॥ ३१ ।।
'शेष' ऐसा पद कहने पर सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि, असंयतसम्यग्दृष्टि और संयतासंयत तिर्यंचोंको ग्रहण करना चाहिए, क्योंकि, इनके अतिरिक्त अन्य तिर्यचोंका ग्रहण करना असंभव है।
शंका---एक ही तिर्यंचगतिके होने पर 'तिरिक्खगदीणं' यह बहुवचनका निर्देश कैसे घटित होता है ?
समाधान-यह कोई दोष नहीं, क्योंकि, एक तिर्यंचगतिसामान्यके होने पर भी गुणस्थान भादिके भेदसे बहुत्वके होने में कोई विरोध नहीं है।
इन उक्त चारों गुणस्थानोंकी स्पर्शनप्ररूपणा वर्तमानकालमें क्षेत्रके समान है और इन्हीं चार गुणस्थानवर्ती तिर्यचौकी अतीतकालिक स्पर्शनप्ररूपणा तिर्यंचोंकी ओष स्पर्शनप्ररूपणाके तुल्य है। किन्तु योनिमतियों में भसंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंका उपपाद नहीं होता है, इतनी मात्र ही विशेषता है।
पंचेन्द्रियातियंच लब्ध्यपर्याप्त जीवोंने कितनाक्षेत्र स्पर्श किया है ? लोकका असं. ख्यातवा भाग स्पर्श किया है ॥ ३२ ॥
वर्तमानकाल में स्वस्थान स्वस्थाम, घेदमा, और कषायसमुद्धात, इन पदोंपर वर्तमान पंचोद्रियतिथंच अपर्यातकोंने सामान्यलोक आदि बार लोकोंका असंख्यातवां भाग और भढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पर्श किया है। मारणान्तिकसमुद्धात और उपपाद पदवाले पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्त तिर्यंचोंने सामान्यलोक आदि तीन लोकोंका मसंख्यातयां भाग और मनुष्यलोक तथा तियरलोक, इन दोनों लोकोसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पर्श किया है।
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