Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२१८] छक्खंडागमे जीवहाणं
[१, १, ३७. कुलसेल-मेरुपव्वद-जोइसावासादिणा । माणुसेहि अगम्मपदेसस्स तस्स कधं माणुसखेत्तववएसो १ ण, लद्धिसंपण्णमुणीणमगम्मपदेसाभावा । मारणंतियसमुग्धादगदेहि सत्त चोद्दसभागा देसूणा पोसिदा । किं कारणं ? सासणाणं मारणंतिएण भवणवासियलोगादो हेट्ठा गमणाभावादो, उवरि सव्वत्थ मारणंतिएण गमणसंभवादो । उववादगदेहि तिण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो पोसिदो; तिरियलोगस्स संखेजदिभागो पोसिदो । ण ताव णेरइय सासणाणं मणुसेसुप्पज्जमाणाणं पोसणं तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागो होदि, दुक्खंभदुबाहुखेत्तफलस्स गेरइयअसंजदसम्मादिट्ठिमारणंतियखेत्तफलस्सेव तिरियलोगासंखेज्जदि. भागत्तुवलंभादो । णादीदकाले अट्ठरज्जुमाऊरिय हिददेवसासणाणं मणुस्सेसुप्पज्जमाणाणमुववादपोसणं तिरियलोगस्त संखेज्जदिभागो होदि, छकावक्कमणियमबलेण पणदालीस
समाधान-चित्रापृथिवी, कुलाचल, मेरुपर्वत और ज्योतिष्क आवास आदिसे हीन प्रदेश विवक्षित है।
शंका-मनुष्योंसे अगम्य प्रदेशवाले इस कुलाचल आदिके क्षेत्रको ‘मनुष्यक्षेत्र' यह संज्ञा कैसे प्राप्त है ?
. समाधान-नहीं, क्योंकि, लब्धिसम्पन्न मुनियों के लिए (मनुष्यलोकके भीतर) अगश्य प्रदेशका अभाव है।
मारणान्तिकसमुद्धातगत सासादनसम्यग्दृष्टि मनुप्योंने कुछ कम सात बटे चौदह (१५) भाग स्पर्श किये हैं। इसका कारण यह है कि सासादनसम्यग्दृष्टियोंका मारणान्तिकसमुद्धातके द्वारा भवनवासियों के निवासलोकसे नीचे गमन नहीं होता है । किन्तु ऊपर सर्वत्र मारणान्तिकसमुद्धातके द्वारा गमन संभव है। उपपादगत उक्त तीनों प्रकारके सासादनसम्यग्दृष्टि मनुष्योंने सामान्यलोक आदि तीन लोकोंका असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है और तिर्यग्लोकका संख्यातवां भाग स्पर्श किया है।
__ शंका- मनुष्यों में उत्पन्न होनेवाले नारकी सासादनसम्यग्दृष्टियोंका स्पर्शनक्षेत्र भी तिर्यग्लोकका संख्यातवां भाग नहीं होता, क्योंकि, (असंख्यात योजन विस्तृत श्रेणीबद्धादि बिलोंके) अपने दोनों ओरके दंडाकार व भुजाकार क्षेत्रोंका क्षेत्रफल', नारकी असंयतसम्यग्दृष्टि
आन्तिकक्षेत्रफलके समान, तिर्यग्लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण पाया जाता है। और न अतीतकाल में ही आठ राजुप्रमाण क्षेत्रको व्याप्त करके स्थित और मनुष्यों में उत्पन्न होने वाले सासादनसम्यग्दृष्टि देवोंका उपपादसम्बन्धी स्पर्शनक्षेत्र तिर्यग्लोकका संख्यातवां
१'दुक्खंभदुबाहुखेत्तफलस्स' इस पदका अर्थ बहुत स्पष्ट नहीं हुआ। प्रायः यही पद पहले भी आ चुका है । (देखो पृ, १८७.) इस पदकी यथाशक्य सार्थकता निकालकर अर्थ कर दिया गया है । संभव है ये उक्त नरकके बड़े से बड़े बिलों के नाम हो । त्रिलोकप्रज्ञप्तिमें बिलों के नाम इस प्रकारके मिलते हैं, किन्तु ये नाम हमें अभी तक नहीं मिले ।
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