Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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३.२]
- छक्खंडागमे जीवट्ठाणं । [१, १, २५. संयंभुरमणसमुद्दो त्ति । संपदि सयंभुरमणसमुद्दविरहिदसव्वसमुद्दखेतफलाणयणविधाणं बुच्चदे- दीव-सायररूवाणं अद्धं रूवूणं विरलिय रूवं पडि वेण्णि दादण अण्णोण्गम्भासे कदे चोदसगुणिदजोयणलक्खमूलेण खंडिदसेढीए वग्गमूलस्स अद्धमागच्छदि । अध पुत्वविरलणाए रूवं पडि जदि चत्तारि रुवाणि दादूग अण्णोण्णब्भासो कीरदे, तो चोद्दसगुणजोयणलक्खेण खंडिदे सेढीए चदुभागो आगच्छदि । अध रूवं पडि सोलस दादण अण्णोण्णम्भासो कीरदि, तो जोयणलक्खवग्गेण तिसहस्सछत्तीससदरूवगुणिदेण जगपदरम्हि भागे हिदे एगभागो आगच्छदि । पुणो तं रूवूणं करिय एगेण आदिणा गुणिय पण्णारस
और उनमें एक प्रक्षेप करनेपर उत्पन्न होती हैं, और इसी क्रमसे स्वयम्भूरमणसमुद्र तक उत्पन्न होती हुई चली जाती हैं।
४४४ = १६, १६४५+५= ८५ चार स. उदाहरण-(१) ४ - २ = २; १ १
४४४४४ ६४, ६४४५+ २१ = ३४१ पांच स.
xexxx४-२५६, २५६४५+८५=१३६५ छह स. (३) ६-२ - ४; ११ ११
___४xxxxxxx४=१०२४; १०२४४५+३४१=५४६१ सात स. (४) ७-२=५१ १ १ १ १
इत्यादि. अब स्वयम्भूरमणसमुद्रको छोड़कर शेष सर्व समुद्रोंके क्षेत्रफल निकालनेका विधान कहते हैं-द्वीप और समुद्रोंकी जितनी संख्या है उसे आधाकर उसमेंसे एक घटावे । पुनः शेष राशिका विरलनकर प्रत्येक रूपके प्रति देयरूपसे दो को देकर परस्पर गुणा करनेपर चतुर्दश-गुणित लक्ष योजनके वर्गमूलसे खंडित जगश्रेणीके वर्गमूलका आधा प्रमाण आता है। अब यदि पूर्व विरलनराशिमें प्रत्येक रूपके प्रति चार रूपोंको देयरूपसे देकर परस्पर गुणा किया जाता है, तो चतुर्दश गुणित लक्ष योजनसे खंडित जगश्रेणीका चौथा भाग आता है। और यदि उसी विरलनराशिमें प्रत्येक रूपके प्रति सोलहको देयरूपसे देकर परस्पर गुणा किया जाता है तो तीन हजार एक सौ छत्तीस (३१३६) रूपोंसे गुणित लक्ष योजनके वर्गसे भाजित जगप्रतरका एक भाग आता है।
उदाहरण-(१) २१ = अ, २१-१ =
/१४००००० यो.
(२) अ-१ -
१४००००.यो.
(३) १६-१
१०००००१ ४ ३१३६
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