Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२०४] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, ४, २५. भागमेतं तिरिक्खसासणसत्थाणखेत्तं होदि । सेसपदसासणसम्मादिट्ठीहि सव्वे दीव-समुद्दा पुचवेरियदेवसंबंधेण पुसिज्जति त्ति कट्ट जोयणलक्खबाहल्लं तप्पाओग्गवाहल्लं वा रज्जुपदरमुड्ढमेगूणवंचासखंडाणि करिय पदरागारेण दृइदे तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागो होदि। 'वा' सदस्स अत्थो गदो ।
__ मारणंतियसमुग्धादगदेहि सत्त चोद्दसभागा देसूणा पोसिदा । तिरिक्खसासणा मेरुमूलादो हेट्ठा किण्ण मारणतियं करेंति त्ति वुत्ते णेरइएसु किण्ण उप्पज्जंति ? सभावदो। जदि एवं, तो हेट्ठा सभावदो चेत्र मारणंतियं ण मेलंति त्ति किण्ण घेप्पदे ? जदि सासणसम्मादिद्विणो हेट्ठा ण मारणंतियं मेलंति, तो तेसिं भवणवासियदेवेसु मेरुतलादो हेट्ठा विदेसु उप्पत्ती ण पावदि त्ति वुत्ते ण एस दोसो, मेरुतलादो हेट्ठा सासणसम्मादिट्ठीणं मारणंतियं णत्थि त्ति एवं सामण्णवयणं । विसेसदो पुण भण्णमाणे णेरइएसु हेट्ठिम
उक्त एक खंडको तियंचोंके अवगाहनासम्बन्धी संख्यात सूच्यंगुलोंसे गुणा करनेपर तिर्यग्लोकके संख्यातवें भागप्रमाण तिर्यंच सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंका स्वस्थानक्षेत्र हो जाता है। चूंकि, विहारवत्स्वस्थानादि शेष पदस्थित तिर्यंच सासादनसम्यग्दृष्टियोंके द्वारा समस्त द्वीप और समुद्र पूर्वभवके वैरी देवोंके सम्बन्धसे स्पर्श किये गये हैं, इसलिए लक्ष योजन बाहल्यवाले अथवा तत्प्रायोग्य बाहल्यवाले राजुप्रतरके ऊपर की ओरसे उनचास खंड करके प्रतराकारसे स्थापित करनेपर तिर्यग्लोकका संख्यातवां भाग हो जाता है । इसप्रकारसे यह सूत्रपठित 'वा' शब्द का अर्थ हुआ।
मारणान्तिकसमुद्धातको प्राप्त तिर्यंच सासादनसम्यग्दृष्टियोंने कुछ कम सात बरे चौदह (४) भाग स्पर्श किये हैं।
शंका-तिर्यंच सासादनसम्यग्दृष्टि जीव सुमेरुपर्वतके मूलभागसे नीचे मारणान्तिकसमुद्धात क्यों नहीं करते हैं ?
प्रतिशंका-यदि ऐसी शंका करते हैं, तो आप ही बताइए कि तियंच सासादनसम्यग्दृष्टि जीव नारकियों में क्यों नहीं उत्पन्न होते हैं ?
समाधान-वे नारकियों में स्वभावसे ही उत्पन्न नहीं होते हैं।
प्रतिसमाधान- यदि ऐसा है तो सुमेरुपर्वतके मूलभागसे नीचे भी वे स्वभावसे मारणान्तिकसमुद्धात नहीं करते हैं, ऐसा क्यों नहीं स्वीकार कर लेते हैं ?
शंका-यदि सासादनसम्यग्दृष्टि जीव मेरुतलसे नीचे मारणान्तिकसमुद्धात नहीं करते हैं तो मेरुतलसे नीचे स्थित भवनवासी देवोंमें उनकी उत्पत्ति भी नहीं प्राप्त होती है ?
समाधान-उक्त शंकापर धवलाकार उत्तर देते हैं कि, यह कोई दोष नहीं, क्योंकि, 'मेरुतलसे नीचे सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंका मारणान्तिकसमुद्धात नहीं होता है। मह सामान्य अर्थात् द्रव्यार्थिकनयका वचन है। किन्तु विशेष अर्थात् पर्यायार्थिकनयकी
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