Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२१० ]
छक्खंडागमे जीवद्वाणं
[ १, ४, २८.
भागो वा । तं उस्सेधसंखेज्जंगुलेहि गुणिदे तिरिक्खसम्मादिट्ठिउववादखेत्तं होदि । संजदासंजदेहि सत्थाणपदट्ठिएहि तिन्हं लोगाणमसंखेजदिभागो, तिरिय लोगस्स संखेज्जदिभागो, अड्डाइज्जादा असंखेज्जगुणो । एत्थ सत्थाणखेत्तमाणिज्जमाणे तिरिक्षसम्मादिहिउववादपदरखेच मुस्सेधगुणगारवज्जिदं रज्जुपदरम्हि अवणिदे जगपदरं सादिरेय पंच पंचासरूहि भजिएगभागो आगच्छदि । तं संखेज्जुस्सेधंगुलेहि गुणिदं संजदासंजदसत्थाणखेतं तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागमेत्तं होदि । विहारवादसत्थाण- वेदण-कसाय वेडव्वियपरिणदेहि संजदासंजदेहि तिन्हं लोगाणमसंखेजदिभागो, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागो, अड्डाइ
उदाहरण– विष्कम्भ है।
=
१९ ३
१
५७
X
X
=
१६ ३२ ४९ - २५०८८ ४४०
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N ३ ३ १० ३ १ N९० ३ १ ८ ८ १ ३२४९
x X X x
X X ६४ ३२ ४९
3x12x12
तिर्यच सम्यग्दृष्टियों के
४४०
उपपादका क्षेत्रफल.
विशेषार्थ - यहां उपलब्ध भागप्रमाणको सातिरेक कहनेका अभिप्राय यह है कि जो ६ का वर्गमूल १६ ले लिया गया है वह यथार्थ वर्गमूलसे कुछ अधिक हो गया है जिससे भागद्दार कुछ बढ़ गया है । पहले इसी विष्कम्भको लेकर परिधिके भिन्न प्रमाण द्वारा भिन्न क्षेत्रफल निकाला गया है । (देखो पृ. १६९. )
अथवा तत्प्रायोग्य संख्यात रूपोंसे भाजित जगप्रतरका एक भाग आता है । उसे संख्यात उत्सेधांगुलोंसे गुणा करनेपर तिर्येच सम्यग्दृष्टि जीवोंका उपपादक्षेत्र हो जाता है । स्वस्थानस्वस्थानपद स्थित संयतासंयत तिर्थचोंने सामान्यलोक आदि तीन लोकोंका असंख्यातवां भाग, तिर्यग्लोकका संख्यातवां भाग और अढाईद्वीपसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पर्श किया है । यहां स्वस्थानस्वस्थानक्षेत्रको निकालनेपर उत्सेधगुणकार से रहित तिर्यच असंयतसम्यग्दृष्टियों के उपपाद प्रतरक्षेत्रको राजुप्रतर में से घटा देनेपर साधिक पचपन रूपसे भाजित एक भाग जगप्रतर आता है ।
उदाहरण - तिर्यच सम्यग्दृष्टियोंका उपपादप्रतरक्षेत्र :
1
र७
८
५७
=
र७२
५७x४९ २५०८८
८ ५७
६ १
=
५७x४९ ४५५ २५०८८
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=
उसे संख्यात उत्सेधांगुलोंसे गुणा करनेपर तिर्येच संयतासंयतोंका स्वस्थानक्षेत्र हो जाता है, जो कि तिर्यग्लोकका संख्यातवां भागमात्र होता है ।
विहारवत्स्वस्थान, वेदना, कषाय और वैक्रियिकसमुद्धात, इन पदोंसे परिणत तिर्यच संयतासंयत जीवोंने सामान्यलोक आदि तीन लोकोंका असंख्यातवां भाग, तिर्यग्लोकका
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