Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, ४, २५.1 फोसणाणुगमे तिरिक्खफासणपरूवणं
(२०३ स्वेहि भागे हिदे जोयणलक्खवग्गेण चालीसाहियसत्तेतालसहस्सरूवगुणिदेण जगपदरम्हि भागे हिदे एगभागो आगच्छदि । एदं दुगुणिय सेढिअसंखेज्जदिभागमेत्तमवणयणरासि पुबिल्लकरणगाहाए आणिदमवणिय लवणसमुदखेत्तफलेण गुणिदे सयंभूरमणविरहिद. समुद्दाणं खेत्तफलं होदि । तं केत्तियमिदि भणिदे एगूणचालीसाहियवारससदरूवेहि जगपदरम्हि भागे हिदे एगभागपमाणं होदि । तत्थ मूलिल्लदोसमुदखेत्तफलं संखेज्जजोयणपदरमेत्तमवणिय रज्जुपदरम्हि अवणिदे एकवंचासरूवेहि सादिरेगेहि जगपदरम्हि खंडिदे एगखंडो आगच्छदि । तं संखेज्जसूचिअंगुलेहि गुणिदे तिरियलोगस्स संखेज्जदि
पुनः उसे, अर्थात् १६ के गुणितक्रमसे उपलब्ध राशिको, एक कम करके आदि स्थानवर्ती एकसे गुणितकर, पन्द्रह रूपोंसे भाग देनेपर चालीस अधिक सैंतालीस हजार अर्थात् सैंतालीस हजार चालीस (४७०४०) रूपोंसे गुणित लक्ष योजनके वर्गसे भाजित जगप्रतरका एक भाग आता है। उदाहरण-१ ( २७ ०००००.४३१३
१०००००x४७०३० इस प्रमाणको दुगुणाकर उसमें से पूर्वोक्त करणगाथासे निकाली हुई जगश्रेणीके भसंख्यातवें भागप्रमाण अपनयनराशिको घटाकर लवणसमुद्रके क्षेत्रफलसे गुणा करनेपर स्वयम्भूरमणसमुद्रसे रहित शेष समस्त समुद्रोंका क्षेत्रफल हो जाता है। यह क्षेत्रफल कितना होता है, ऐसा पूछनेपर उत्तर देते हैं कि वह उनतालीस अधिक बारह सौ अर्थात् बारहसौ उनतालीस (१२३९) रूपोंसे भाजित जगप्रतरका एक भाग प्रमाण होता है।
उदाहरण- २ (0.... ४.)- } x ल - २२३९ स्वयम्भूरमणको छोड़ शेष समुद्राका क्षेत्रफल.
(इसी प्रमाणको उत्पन्न करने की प्रक्रियाके विस्तारके लिये देखो गोम्मटसार जीवकांड सं. टीका व हिन्दी अनुवाद गाथा ५४७, पृ. ९६४ आदि.)
स्वयम्भूरमणसमुद्रसे रहित शेष समुद्रोंके उक्त क्षेत्रफलमेसे मूल अर्थात् आदिके लवणोदधि और कालोदधि इन दो समुद्रोंके प्रतरात्मक संख्यात योजनप्रमाण क्षेत्रफलको घटाकर पुनः शेष राशिको प्रतरात्मक राजुके प्रमाणसे घटा देनेपर साधिक इकावन रूपोंसे जगप्रतरके खंडित करनेपर एक खंड आ जाता है।
उदाहरण-र'-(२७ - २९ ल)- अधिक तिर्यग्लोकका संख्यातवां भाग तिर्यंच सासादन जीवोंका स्वस्थानक्षेत्र.
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