Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, ४, १.] फोसणाणुगमे सासणसम्मादिहिफोसणपरूवणं
[१५९ एदेण विहाणेण परूविदगच्छं विरलिय रूवं पडि चत्तारि रुवाणि दादण अण्णोण्णब्भत्थं करिय रूपोनमादिसंगुणमेकोनगुणोन्मथितमिच्छा'' एदेण गाहाखंडेण संकलणाओ आणिय दोहं सकलणाणं धणं कादूग तदियसंकलणे अवणिदे चंदविंचसलागाओ उप्पज्जति । ताओ अट्ठारससयसमहियताराहि गुणिदे जोदिसियाणं सयलबिंत्रसलागाओ होति । ताओ संखेज्जघणंगुलेहि गुणिदाओ सत्थाणखेत्तं होदि । सत्थाणखेत्तं
ऊपर बताये गए इस विधानसे प्ररूपित गच्छको विरलन करके प्रत्येक एकके ऊपर चार चारको देयरूपसे देकर परस्सर गुणा करके 'उनमें से एक कम करे, पुनः आदिधनसे संगुणित करे, पुनः एक कम गुणकारका भाग दे, तब इच्छित राशि उत्पन्न होती है। इस गाथाखंडरूप सूत्रसे संकलनराशियों को निकालकर दोनों संकलनराशियोंका धन (जोड़) करके इस राशिमेंसे तीसरी संकलनराशिको घटा देने पर चन्द्रबिम्बकी शलाकाएं उत्पन्न हो जाती हैं।
उदाहरण-गच्छ ३२, आदिधन ११२०० (तृतीय समुद्रका सर्वसंकलन ), सर्व द्वीपसमुद्रों की संख्या असंख्यात = ३ (काल्पनिक)।
६३४११२०० प्रथम संकलन-१४१४ १ = ६४, ६४ - १ = ६३, ६३ =२३५२००।
४-१ द्वितीय संकलन-४-१-१ = ६४, ६४ - १ = ६३, ६३
४-१
७५६४ तृतीय संकलन –२x२x२-८, ८- १ = ७, ,
२- प्रथम संकलन द्वितीय संकलन तृतीय संकलन समस्त चन्द्र-शलाकाएं । २३५२०० + १३४४
२३६०९६ इस प्रमाणमें पहले बताई हुई प्रथम पांच-द्वीप समुद्रोसंबन्धी चंद्रोंकी संख्या सम्मिलित नहीं है।
ठीक यही संख्या प्रथम पांच द्वीप-समुद्रोंको छोड़कर आगेके तीन समुद्र वा छीपोंके पृथक् पृथक् निकाले हुए चंद्रोंकी संख्याके योगसे आती है
१२७
= १३४४ ।
= ४४८ ।
११२००+४४९२८+१७९९६८ = २३६०९६ (देखो प्र.१५४-१५५.)
उक्त प्रकारसे उत्पन्न हुई चन्द्रबिम्बकी शलाकाओंको एक सौ अठारहसे अधिक ताराओंके प्रमाणसे गुणा कर देनेपर ज्योतिष्क देवोंके सकल बिम्बोंकी शलाकाएं उत्पन्न हो जाती हैं।
विशेषार्थ-अभी पहले जो एक चन्द्रका परिवार बताया गया है, उसमेंसे एक चन्द्र, एक सूर्य, अठ्यासी ग्रह और अट्ठाईस नक्षत्र, इनको जोड़ देनेपर (१+१+८८+२८=११८)
- १ पदमत्ते गुणयारे अण्णोणं गुणिय रूवपरिहीणे । रूऊणगुणेणहिए मुहेण गुणियम्मि गुणगणियं ॥ त्रि. सा २३१.
२ ति. प. पत्र २२६.
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