Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, ४, १५. 1
फोसणागमे रइफोसणपरूवणं
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आयामो होदि । एत्थ उस्सेधेण खेत्तफलं गुणिदे तिरियलोगादो असंखेज्जगुणं मारणंतियखेत्तं होदिति वुत्ते ण होदि, णिरयावासो ण एक्को वि एरिसविक्खंभसहिओ अस्थि । कधमेदं परिच्छिज्जदे ? ' णेरड्या असंजदसम्मादिट्ठी सच्चपदेहि अदीदकाले तिरियलोगस्स असंखेज्जदिभागं पुसंति ' त्ति सुत्तत्रयणादो । केत्तिओ पुण णेरइयावासाणं विक्खंभो होदित्ति वृत्ते असंखेज्जजोयणमेत्तो होदि । तं जहा - सग-सगसत्थाणखेत्तं ट्ठविय सगसगबिल-संखाए ओट्टिदे एगविलेण रुद्वखे तमसंखेज्जजोयणविक्खंभायामं होदि । तं संखेज्जरज्जूहि गुणदे एगविलमस्सिदूण मारणंतियखेत्तं होदि । एदं बिलसंखाए गुणिदे सयलं मारणंतियखेत्तं होदि । एदं तिरियलोगस्स असंखेज्जदिभार्ग होदि । सव्वणिरयावासाणं खादफलमसंखेज्जजोयणमेतं हो दूग एगरज्जुपदरस्स असंखेज्जदिभागमेत्तं चैव होदि । कुदो ? ' असंजदसम्मादिट्ठि मारणंतिय पोसणं तिरियलोगस्स असंखेज्जदिभागो' त्ति वादो । जदि कहिं पि एकस्स बिलस्स खेत्तफलं रज्जुपदरस्स संखेजदिभागमेतं होदि,
शंका- यहां पर अर्थात् उक्त क्षेत्रमें उत्सेधसे क्षेत्रफलको गुणा करने पर तो तिर्यग्लोक से असंख्यातगुणा मारणान्तिकक्षेत्र हो जाता है ?
समाधान- नहीं होता है, क्योंकि, इस प्रकार के विष्कम्भ से सहित एक भी नारकावास नहीं है ।
शंका- यह कैसे जाना जाता है ?
समाधान - ' नारकी असंयतसम्यग्दृष्टि सर्वपदोंकी अपेक्षा अतीतकाल में तिर्यग्लोक के असंख्यातवें भागमात्र क्षेत्रको स्पर्श करते हैं' इस प्रकार के सूत्र वचनसे उक्त बात जानी जाती है।
शंका- नारकोंके आवासोंका विष्कम्भ कितना होता है ? समाधान - असंख्यात योजन प्रमाण होता है । वह इस प्रकार से है- अपना अपना स्वस्थानक्षेत्र स्थापित करके अपने अपने बिलोंकी संख्याओंसे अपवर्तन करनेपर एक बिलसे रुद्धक्षेत्र असंख्यात योजन विष्कम्भ और आयामवाला हो जाता है । उसे संख्यात राजुओंसे गुणा करनेपर एक बिलका आश्रय करके मारणान्तिकसमुद्धातगत क्षेत्र हो जाता है । इस प्रमाणको बिलोंकी संख्यासे गुणा करनेपर सकल मारणान्तिकक्षेत्र हो जाता है । यह मारणान्तिकक्षेत्र तिर्यग्लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण होता है ।
सर्व नरकावासका घनफल असंख्यात योजनप्रमाण होकर भी एक राजुप्रतरका असंख्यातवां भागमात्र ही होता है, क्योंकि, ' असंयतसम्यग्दष्टिं नारकोंका मारणान्तिकस्पर्शन तिर्यग्लोकके असंख्यातवें भाग होता है ' ऐसा सूत्र वचन है। यदि कहीं भी एक बिलका क्षेत्रफल राजुप्रतरके संख्यातवें भागप्रमाण होता, तो असंयत सम्यग्दृष्टि नारकों का
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