Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, ४, १६.] फोसणाणुगमे णेरइयफोसणपरूवणं
[१८५ पंचिंदियतिरिक्ख-पज्जत्त-जोणिणि-जोदिसिय-वेंतरदेव-अवहारकालेहि खुद्दाबंधसुत्तसिद्धेहि अकदजुम्मजगपदरे भागे हिदे एदाओ रासीओ सछेदाओ होज्ज ? ण च एवं, जीवाणं छेदाभावा । किं च दव्वाणियोगदारवक्खाणम्हि वुत्तहेट्ठिम-उवरिमवियप्पा अभावमुव ढुकंते, अवग्गसमुट्ठिदलोगत्तादो । तिष्णिसदतेदालघणरज्जुपमाणो उवमालोओ णाम । एदम्हादा अण्णो पंचदव्वाहारलोगो, तदो सव्वमेदं घडदि त्ति वुत्ते ण, उवमेयाभावे उवमाए अण्णत्थ अणुवलंभादो। तम्हा उवमेयेसु उस्सेह-पमाणंगुलपलिदोवम सागरोवमसण्णिदेसु खेत्त-कालेसु संतेसु उवमाभूदउस्सेह-पमाणंगुल-पल्ल-सागराणमत्थित्तमुवलम्मदे । तम्हा एत्थ वि उवमेएण लोगेण पमाणदो उवमालोगाणुसारिणा पंचदव्याहारेण होदव्वं, अण्णहा एदस्स उवमालोगत्ताणुववत्तीदो ।
पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिमती, ज्योतिष्क और व्यन्तरदेवोंके खुद्दाबंधसूत्र-सिद्ध, कृतयुग्मराशिवाले अवहारकालोसे अकृतयुग्म जगप्रतरमें भाग देने पर ये उक्त राशियां सछेद हो जायेंगी, किन्तु ऐसा है नहीं, क्योंकि, उन जीवोंके छेदका अभाव है। (कृतयुग्म आदि राशियोंके लिये देखो तीसरा भाग, पृ. २४९)।
दूसरी बात यह है कि द्रव्यानुयोगद्वारके व्याख्यानमें कहे गये अधस्तन और उपरिम विकल्प अभावको प्राप्त होते हैं. क्योंकि, उक्त प्रकारसे लोक वर्गविहीनराशिसे समुत्पन्न होता है।
शंका-तीन सौ तेतालीस घनराजुप्रमाण लोकका नाम उपमालोक है । इससे अन्य पांच द्रव्योंका आधारभूत लोक भिन्न है। यदि ऐसा माना जाय, तो यह सब उपर्युक्त कथन घटित हो सकता है ?
समाधान- नहीं, क्योंकि, उपमेयके अभावमें उपमाकी अन्यत्र उपलब्धि नहीं होती है । अर्थात् यदि उपमाके योग्य किसी पदार्थका अस्तित्व न माना जायगा, तो फिर उपमाकी सार्थकता कहां पर होगी? इसलिए उत्सेधांगुल और प्रमाणांगुल संज्ञिक क्षेत्ररूप उपमेयोंके तथा पल्योपम और सागरोपम संज्ञिक कालरूप उपमेयोंके विद्यमान होने पर उपमारूप उत्सेधांगुल, प्रमाणांगुल, पल्य और सागरका अस्तित्व पाया जाता है। अतएव यहां पर भी उपमेयरूप लोकके साथ प्रमाणकी अपेक्षा उपमालोकका अनुसरण करनेवाला पांच द्रव्योंका आधारभूत लोक होना चाहिए, अन्यथा इसका नाम उपमालोक हो नहीं सकता।
१खेत्तेण पंचिंदियतिरिक्ख-पंचिंदियतिरिक्खपज्जत्त-पंचिंदियतिरिक्खजोणिणि-पंचिंदियतिरिक्खअपज्जत्तएहि पदरमवहिरादि देवअवहारकालादो असंखेज्जगुणहीणेण कालेण संखेज्जगुणहीण कालेण संखेज्जगुणेण कालेण असंनेजगुणहीणेण कालेण ॥ खुदाबंधसुत्तं, अ. प्र. प. ५१९. एदे अवहारकाले जहाकमेण सलगभूदे ठविय पंचिंदियतिरिक्खपंचिंदियतिरिक्खपज्जत्त-पंचि दियतिरिक्खजोणिणि-पंचिंदियतिरिक्ख अपज्जत्तपमाणेण जगपदरे अवहिरिन्जमाणे सला गाओ जगपदरं च जुगवं समप्पंति । धवला. अ. प्र. प. ५१९.
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