Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१४८ ]
छक्खंडागमे जीवाण
[ १, ४, ३.
एत्थ पज्जवट्ठियपरूवणा gच्चदे । सत्थाणसत्थान- वेदण-कसाय-मारणंतियउववादगदमिच्छादिट्ठीहि अदीदेण वट्टमाणेण च सव्वलोगो फोसिदो । विहारव दिसत्थाणविमुग्धादगदेहि वट्टमाणे काले तिन्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागो फोसिदो | अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणं खेत्तं फोसिदं । एत्थ ओवट्टणाए खेत्तभंगो | अदीदेण अट्ठ चोदसभागा देखणा । तं जधा - लोगणालिं चोदस खंडे करिय मेरुमूलादो हेडिम दो- खंडाणि उवरिम-छ-खंडाणि च एगट्ठे कदे अट्ठ चोद्दस भागा होंति । ते च मिजोयणसहस्सेणूणा होंति ।
सास सम्मादिहिं केवडियं खेत्तं फोसिदं, लोगस्स असंखेज्जदिभागों ॥ ३ ॥
एदं सुतं मंदबुद्धिसिस्स संभालणङ्कं खेत्ताणि ओ गद्दारे उत्तमेव पुणरवि उत्तं, अदीदाणागदवमाणकालविसिट्ठखेत्तेसु चोदसगुणट्ठा गणित्र द्वेसु पुच्छिदेसु तस्सिस्स संदेहविणासङ्कं वा दु-कालविसिठ्ठखेत्तपरूवणं कीरदे । सत्थाणसत्याण-विहारव दिसत्थाण- वेदण
अब यहां पर पर्यायार्थिक नयसम्बन्धी प्ररूपणा कहते हैं- स्वस्थानस्वस्थान, वेदनासमुद्वात, कषायसमुद्धात, मारणान्तिकसमुद्धात और उपपाद पदगत मिथ्यादृष्टि जीवोंने अतीतकाल और वर्तमानकालकी अपेक्षा सर्व लोक स्पर्श किया है । विहारवत्स्वस्थान और वैक्रियिकसमुद्वातगत मिध्यादृष्टि जीवोंने वर्तमानकाल में सामान्यलोक आदि तीन लोकोंका असंख्यातवां भाग और तिर्यग्लोकका संख्यातवां भाग स्पर्श किया है; तथा अढाईद्वीप से असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पर्श किया है। यहां पर अपवर्तना क्षेत्रप्ररूपणा के समान जानना चाहिए । विहारवत्स्व स्थान और वैक्रियिकसमुद्धातगत मिथ्यादृष्टि जीवोंने अतीतकालकी अपेक्षा देशोन (कुछ कम ) आठ बटे चौदह (१४) राजु क्षेत्र स्पर्श किया है, वह इस प्रकार से है -- लोकनाली के चौदह खंड करके मेरुपर्वतके मूलभागसे नीचे के दो खंडों को और ऊपर के छह खंडांको एकत्रित करने पर आठ बटे चौदह ( ) भाग हो जाते हैं। ये आठ बटे चौदह राजु तीसरी पृथिर्वाके नीचे एक हजार योजनोंसे हीन प्रमाण होते हैं, इसीलिए इन्हें 'देशोन' कहा है ।
सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है ॥ ३ ॥
क्षेत्रानुयोगद्वार में कहा गया ही यह सूत्र मंदबुद्धि शिष्यों के संभालने के लिए फिर भी कहा गया है । अथवा, भूतकाल, भविष्यकाल और वर्तमानकाल विशिष्ठ तथा चौदह गुणस्थानोंसम्बन्धी क्षेत्रोंके पूछने पर उस शिष्य के संदेह - विनाशनार्थ भूतकाल और भविष्यकाल, इन दो कालोंसे विशिष्ट वर्तमानक्षेत्रकी प्ररूपणा की जा रही है । स्वस्थानस्वस्थान, विहार१ सासादन सम्यग्दृष्टि मिर्लोकस्यासंख्येयभागः अष्टौ द्वादश वा चतुर्दशभागा देशोनाः । स. सि. १,
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