Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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छखंडागमै जीवट्ठाणं
[१, ४, ४. गुलसदवग्गसुत्तादो। 'जत्तियाणि दीव-सागररूवाणि जंबूदीवछेदणाणि च रूवाहियाणि तत्तियाणि रज्जुछेदणाणि' त्ति परियम्मेण एवं वक्खाणं किण्ण विरुज्झदे ? एदेण सह विरुज्झदि, किंतु सुत्तेण सह ण विरुज्झदि । तेणेदस्स वक्खाणस्स गहणं कायव्यं, ण परियम्मस्स; तस्स सुत्तविरुद्धत्तादो । ण सुत्तविरुद्धं वक्खाणं होदि, अइप्पसंगादो । तत्थ
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वर्गप्रमाण जगप्रतरका भागहार बतानेवाले सूत्रसे जाना जाता है कि स्वयम्भूरमणसमुद्रके परभागमें भी राजुके अर्थच्छेद होते हैं।
शंका-'जितनी द्वीप और सागरोंकी संख्या है, तथा जितने जम्बूद्वीपके अर्धच्छेद होते हैं, एक अधिक उतने ही राजुके अर्धच्छेद होते हैं। इस प्रकार के परिकर्म-सूत्र के साथ यह उपर्युक्त व्याख्यान क्यों नहीं विरोधको प्राप्त होगा?
समाधान-भले ही परिकर्भ-सूत्रके साथ उक्त व्याख्यान विरोधको प्राप्त होवे, किन्तु प्रस्तुत सूत्रके साथ तो विरोधको प्राप्त नहीं होता है। इसलिए इस ग्रन्थके व्याख्यानको ग्रहण करना चाहिए, परिकर्मके व्याख्यानको नहीं, क्योंकि, वह व्याख्यान सूत्रसे विरुद्ध है। और, जो सूत्र विरुद्ध हो, उसे व्याख्यान नहीं माना जा सकता है, अन्यथा अतिप्रसंग दोष प्राप्त होता है।
विशेषार्थ-प्रकृतमें ज्योतिषी देवोंकी संख्या निकालनेके लिए द्वीप-सागरों की संख्या शात करना धवलाकारको आवश्यक प्रतीत हुआ। द्वीप-सागरोंकी संख्या अन्य आचार्योके उपदेशानुसार राजुके अर्धच्छेदोंमेले ६ तथा जम्बूद्वीपके अर्धच्छेद कम करने से प्राप्त होती है, मेरु व जम्बूद्वीप आदि प्रथम पांच द्वीप-समद्रों में जो राजुके छह अर्धच्छेद पड़ते है वे यहां सम्मिलित नहीं किये गये, क्योंकि, इन द्वीप-समुदोकी चन्द्रगणना पृथक् की गई है। किन्तु धवलाकारका मत है कि यदि इतना ही द्वीप-सागरोंका प्रमाण लिया जावे, तो उसके आधारसे निकाली हुई ज्योतिषी देवोंकी संख्या २५६ के भागहारसे निकाली हुई संख्यासे विषम पड़ती है । उसके वैषम्य को दूर करने के लिए धवलाकारको यह आवश्यक प्रतीत हुआ कि द्वीप-सागरोंकी संख्या निकालनेके लिए राजुके अर्धच्छेदोंमेंसे जम्बूद्वीपके अर्धच्छेदोंके अतिरिक्त ६ ही नहीं, किन्तु छहसे अधिक संख्यात अंक और कम करना चाहिए। इसपरसे ज्ञात होता है कि केवल ६ अंक कम करनेसे द्वीप-सागरोंकी संख्याद्वारा ज्योतिषीदेवोंका जो प्रमाण निकलेगा, वह २५६ के भागहारद्वारा प्राप्त संख्यासे बढ़ जाता है।
छहसे अधिक संख्यात अंकों के कम करने में धवलाकारने हेतु यह दिया है कि स्वयम्भूरमणसमुद्रसे परे जो पृथिवी है, वहां भी राजुके अर्धच्छेद पड़ते हैं, किन्तु वहां ज्योतिषी देव नहीं है। इसलिए वहांके संख्यात अर्धच्छेद भी उक्त गणनामें कम करना
१ खेतेण पदरस्स वेछप्पणंगुलस यवग्गपडिमागेण । जी. द. सू. ५५, मजिदम्मि सेदिवग्गे बेस यमपण. अंगुलकदीए । जलद्धं सो रासी जोदिसिय सुराण सम्पाणं ॥ ति. प. ७, १०.
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