Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, ४, १.] फोसणाणुगमे सासणसम्मादितिफोसणपरूवणं [१५१ जाव बाहिरमट्ठ पंतीओ गदाओ ति । तदो समुद्दभतरपढमपंतीए वेसद-अट्ठासीदिमेसा । तदो चदुरूवब्भहियं कादूण णेदव्वं जाव एत्थतणनाहिरपंति ति । एवं णेदव्वं जाव सयंभूरमणसमुद्दो त्ति । वुत्तं च
चंदाइच्च-गहेहिं चेवं णक्खत्त-ताररूवेहिं ।
दुगुण-दुगुणेहिं णारंतरेहि दुवग्गो तिरियलोगो' ॥ २॥ एदाणि सव्वविमाणाणि मेलाविदे संखेज्जपदरंगुलेहि जगपदरम्हि भागे हिदे एगभागमेत्ताणि विमाणाणि होति । पुणो ताणि
शैलसे बाहिरी पंक्ति (वलय) में एकसौ चवालीस चन्द्र और इतने ही सूर्य हैं। इससे आगे चार संख्याको प्रक्षेप करके, अर्थात् चार चार बढ़ाते हुए बाहरी आठवीं पंक्ति आने तक ले जाना चाहिए।
विशेषार्थ-पुष्करार्धद्वीपसे ५० हजार योजन आगे जाकर ज्योतिर्मडलकी प्रथम पंक्ति या वलय है, वहांपर चन्द्र और सूर्य की संख्या १४४, १४४ है। उससे आगे एक एक लाख योजन आगे आगे जाकर सात वलय और हैं, जिनपर कि चन्द्र और सूर्योकी संख्या ४,४ बढ़ती जाती है, अर्थात् वहांपर क्रमशः १४८, १५२, १५६, १६०, १६४, १६८, १७२ चन्द्र था इतने ही सूर्योकी संख्या हो जाती है । इस प्रकारके वलय स्वयम्भूरमणसमुद्र तक अवस्थित हैं।
इससे आगेके समुद्र की भीतरी पंक्ति में दो सौ अठासी चन्द्र वा इतने ही सूर्य हैं। इससे आगे प्रत्येक वलयपर चार चार चन्द्र और सूर्यकी संख्या यहांकी बाहरी पंक्ति माने तक बढ़ाते हुए ले जाना चाहिए। इस प्रकारसे स्वयम्भूरमणसमुद्र तक चन्द्र और सूर्यकी संख्या बढ़ाते हुए ले जाना चाहिए । कहा भी है
चन्द्र, भादित्य (सूर्य), ग्रह, नक्षत्र और ताराओंकी दूनी दूनी संख्याओंसे निरन्तर तिर्यग्लोक द्विवर्गात्मक है॥२॥
ये सर्व (चन्द्र या सूर्य) विमान एकटे मिलाने पर संख्यात प्रतरांगुलोंसे जगप्रतरमें भाग देने पर एक भागप्रमाण विमान होते हैं। पुनः वे सब
१मणुसुत्तरगिरिंदादो पण्णाससहस्सजोयणाणं गंतूण पदमवलयं होदि । तचो पर पत्तकमेकलक्खजोयणाणि गंतूण विदियादिवलयाओ होति नाव सयंभुरमणसमुद्दो त्ति । णवरि सयंभुरमणसमुदस्स वेदीए पण्णाससहस्सनोयणाणिमपाविय तम्मि पदेसे चरिमवलयं होदि । ति.प.पत्र २२४. मणुसुत्तरसेलादो वेदियमूलादु दीवउवहीणं । पण्णाससहस्सेहि य लक्खे लक्खे तदो वलयं ॥ दीवद्धपढमवलये च उदालसयं तु वलयवलयेसु । चउ आदीदो दुगुणदुगुणकमा । त्रि. सा ३४१.३५०.
२ द्रव्यप्र. पृ. ३६. ३ अट्ट चउ दुति ति सत्ता सत य ठाणेसु णवसु सुण्णाणि । छत्तीस सत्त दु णव अट्ठा तिचउक्का हॉति अंककमा । एदेहि गुणिसंखेज्जरूवपदरंगुलेहिं मजिदाए । सेठिकदीए लदं माणं चंदाण जोइसिंदागं । ति. प. ७, ११, १२.
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