Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१४२] छक्खंडागमै जीवहाणं
[१, ५, १. विणा वाचिय-वाचयभावाणुववत्तीदो । सोयमिदि बुद्धीए अण्णदव्वेण अण्णदबस्स एयत्तकरणं ठवणफोसणं णाम । जहा, घड-पिढरादिसु एसो उसहो अजीवो अहिणंदणो ति । एसो वि दव्वट्ठियस्स णिक्खेवो, दोण्हमेयत्त-धुवत्तेहि विणा ठवणापवुत्तीए असंभवादो । आगम-णोआगममेदेण दुविहं दव्यफोसणं । तत्थ फोसणपाहुडजाणगो अणुवजुतो खओवसमसहिओ आगमदो दव्वफोसणं णाम । णोआगमदव्यफोसणं जाणुगसरीर-भविय-तव्वदिरित्तदव्यफोसणभेएण तिविहं । तत्थ जाणुगसरीरदव्वफोसणं भविय-वट्टमाण-समुज्झादभेएण तिविहं । कधमेदस्स तिविहसरीरस्स फोसणववदेसो ? फेोसणपाहुडसहचारादो । जहा, असिसहचरिदो असी, धणुसहचरिदो धणुहमिदि। भवियदव्यफोसणं भविस्सकाले फोसणपाहुडजाणओ। कधमेदस्स दव्यफोसणववएसो ? पुवुत्तरावत्थाणं दव्वेण एगत्तादो। जहा, इंदहमाणिदकट्ठस्स इंदो त्ति ववदेसो । तव्वदिरित्तदव्यफोसणं सचित्त-अचित्त
नहीं बन सकता है। यह वही है ' इस प्रकारकी बुद्धिसे अन्य द्रव्यके साथ अन्य द्रव्यका एकत्व स्थापित करना स्थापना निक्षेप है। जैसे, घट, पिठर (पात्रविशेष) आदिकमें 'यह ऋषभ है, यह अजीव है, यह अभिनन्दन है' इत्यादि । यह स्थापनानिक्षेप भी द्रध्यार्थिकनयका विषय है, क्योंकि, दो पदार्थों की एकता और ध्रुवताके विना स्थापनानिक्षेपकी प्रवृत्ति असंभव है। आगम और नोआगमके भेदसे द्रव्यस्पर्शननिक्षेप दो प्रकारका है। उनमें स्पर्शनविषयक शास्त्रका ज्ञायक, किन्तु वर्तमानमें अनुपयोगी और क्षयोपशमसहित जीव भागमद्रव्यस्पर्शननिक्षेप है। नोआगमद्रव्यस्पर्शननिक्षेप शायकशरीर, भव्य और तद्व्यतिरिक्तद्रव्यस्पर्शनके भेदसे तीन प्रकारका है। उनमें शायकशरीर द्रव्यस्पर्शन भावी, वर्तमान और समुज्झित (त्यक्त) के भेदसे तीन प्रकारका है।
शंका-इस तीन प्रकारके शरीरको 'स्पर्शन' यह व्यपदेश (संज्ञा) कैसे प्राप्त हो सकता है?
समाधान-स्पर्शनप्राभूतके साहचर्यसे उक्त तीन प्रकारके शरीरको भी स्पर्शनसंक्षा प्राप्त हो जाती है। जैसे, असि (तलबार) से सहधरित पुरुषको असि और धनुषसे सहवरित पुरुषको धनुष संक्षा प्राप्त हो जाती है।
भविष्यकालमें स्पर्शनविषयक शास्त्र के ज्ञायकको भव्यद्रव्यस्पर्शन कहते हैं। शंका-इस भव्यशरीरपालेके 'द्रव्यस्पर्शन ' यह संक्षा कैसे है ?
समाधान-विवक्षित द्रव्यकी पूर्ष अवस्था और उत्तर अवस्थाका उस व्यके साथ एकत्व पाया जाता है। जैसे, इन्द्र बनानेके लिये लाए गए काष्ठकी 'इन्द्र' यह संक्षा देखी जाती है।
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