Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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सिरि-भगवंत-पुप्फदंत-भूदबलि-पणीदो
छक्खंडागमो सिरि-वीरसेणाइरिय-विरइय-धवला-टीका-समण्णिदो
तस्स पढमखंडे जीवहाणे
फोसणाणुगमो गमिऊणेलाइरिए तिहुवणभवणेक्कमंगलप्पईवे ।
कलिकलुसफुसणवसणे सुत्तं फोसासियं वोच्छं । पोसणाणुगमेण दुविहो णिद्देसो, ओघेण आदेसेण य ॥ १॥
णामफोसणं ठवणफोसणं दव्यफोसणं खेत्तफोसणं कालफोसणं भावफोसणं चेदि छव्विहं फोसणं । तत्थ णामफोसणं फोसण सद्द।। एसो दबट्टियस्स णिक्खेवो, धुवत्वेण
त्रिभुवनरूपी भवनके प्रकाशित करनेके लिए अद्वितीय मंगलप्रदीप, और कलिकालकी कलुषताके संमार्जनके लिए वस्त्रस्वरूप श्री एलाचार्यको नमस्कार करके स्पर्शनानुगमाश्रित सूत्रों के अर्थको कहता हूं ॥
___स्पर्शनानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है, ओघनिर्देश और आदेशनिर्देश ॥१॥
___नामस्पर्शन, स्थापनास्पर्शन, द्रव्यस्पर्शन, क्षेत्रस्पर्शन कालस्पर्शन और भावस्पर्शनके भेदसे स्पर्शन छह प्रकारका है। उनमें 'स्पर्शन' यह शब्द नामस्पर्शन निक्षेप है । यह निक्षेप द्रव्यार्थिकनयका विषय है, क्योंकि, ध्रुवपनेके विना वाच्य-वाचकभावरूप सम्बन्ध
१ स्पर्शनमुच्यते-तद् द्विविधम् । सामान्येन विशेषेण च ॥ स. सि. १, ८.
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