Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, ३, ९. एदं' पि देसामासियं सुत्तमेव, संगहिदाणेगसुत्तत्थादो । तं जहा- सत्थाणसत्थाण-विहारवदिसत्थाण-वेदण-कसायसमुग्धादगदपंचिंदियतिरिक्खमिच्छाइट्ठी केवडि खेत्ते ? तिण्हं लोगाणमसंखेज्जदिमागे, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागे, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणे अच्छंति । एत्थ पंचिंदियतिरिक्खअपज्जत्तरासिं मोनूण पंचिंदियतिरिक्खपज्जत्तरासी चेव घेत्तव्यो, अपज्जत्तोगाहणादो पज्जत्तोगाहणाए असंखेज्जगुणत्तुवलंभादो । एत्थ सत्थाणसत्थाणरासी मूलरासिस्स संखेज्जभागमेत्ता होदि । सेसरासीओ तस्स संखेज्जदिभागमेतीओ। एत्थ ओगाहणगुणगारो संखेज्जघणंगुलमेत्तो। ओवट्टणं जाणिदण कादव्यं । एवं पंचिंदियतिरिक्खपज्जत्त-जोणिणीमिच्छादिट्ठीणं । वेउब्धियसमुग्घादगदमिच्छादिट्ठी केवडि खेत्ते ? चदुण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणे अच्छंति । एवं पंचिदियतिरिक्खपज्जत्त-जोणिणीमिच्छाइट्ठीणं । मारणंतियसमुग्धादगदपंचिंदियतिरिक्खमिच्छाइट्ठी केवडि खेत्ते ? तिण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे । कुदो ? पंचिंदियतिरिक्खपज्जत्तरासिस्स पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्तभागहारस्स
___ यह भी सूत्र देशामर्शक ही है, क्योंकि, इसमें अनेक सूत्रोंका अर्थ संग्रहीत है उसका स्पष्टीकरण इसप्रकार है-स्वस्थानस्वस्थान, विहारवत्स्वस्थान, घेदनासमुद्धात और कषायसमुद्धातको प्राप्त पंचेन्द्रियतियंच मिथ्यादृष्टि जीव कितने क्षेत्र में रहते हैं ? सामान्यलोक, ऊर्ध्वलोक और अधोलोक, इन तीन लोकोंके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रमें, तिर्यग्लोकके संख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रमें और अढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुणे क्षेत्रमें रहते हैं। यहांपर पंचेन्द्रिय तिर्यंच अपर्याप्त जीवराशिको छोड़कर पंचन्द्रिय तिर्यंच पर्याप्त राशिका ही ग्रहण करना चाहिये, क्योंकि, अपर्याप्तोंकी अवगाहनासे पर्याप्तोकी अवगाहना
पातगुणी पाई जाती है। यहांपर स्वस्थानस्वस्थानराशि मूलराशिके संख्यात बहुभागप्रमाण होती है। शेष राशियां मुलराशिके संख्यातवें भागमात्र होती हैं। यहांपर अवगाहनाका गुणकार संख्यात घनांगुलप्रमाण है। अपवर्तनाका कथन जानकर करना चाहिये। इसीप्रकार पंचेन्द्रिय तिर्यंच पर्याप्त तथा योनिमती तिथंच मिथ्यादृष्टियोंकी स्वस्थानस्वस्थानराशि आदि समझना चाहिये । पैकियिकसमुद्धातको प्राप्त पंचेन्द्रिय तिथंच मिथ्यादृष्टि जीव कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? सामान्यलोक आदि चार लोकोंके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रमें और अढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुणे क्षेत्रमें रहते हैं । इसीप्रकार पंचेन्द्रिय तिर्यंच पर्याप्त तथा योनिमती तिर्यंच मिथ्यादृष्टियोंका वैक्रियिकसमुद्धातगत क्षेत्र जानना चाहिये । मारणांतिकसमुद्धातको प्राप्त पंचेन्द्रिय तिर्यंच पर्याप्त मिथ्यादृष्टि जीव कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? सामान्य लोक, ऊर्बलोक और अधोलोक इन तीन लोकोंके असंख्यात भागप्रमाण क्षेत्र में रहते हैं, क्योंकि, पंचेन्द्रियतिर्यंच पर्याप्तराशिका भागहार पल्योपमके असंख्यातवें भागमात्र पाया जाता है।
१मप्रती एवं 'इति पाठ
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