Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१३०] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, ३, ७५. गुणिदे उववादखेत्तं होदि। ओवट्टणा जाणिय कायव्वा । तेउलेस्सियगुणपडिवण्णाणं ओघभंगो। पम्मलेस्सियमिच्छादिट्ठी सत्थाणसत्थाण-विहारवदिसत्थाण-वेदण-कसायसमु. ग्घादगदा तिहं लोगाणमसंखेज्जदिभागे, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागे, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणे अच्छंति, पहाणीभूदतिरिक्खरासित्तादो । वेउब्धिय मारणंतिय-उववादगदा चदुण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे, अड्डाइजादो असंखेज्जगुणे, पधाणीकदसणक्कुमार-माहिदरासीदो । सासणादिगुणपडिवण्णाणं अप्पमत्तसंजदंताणं ओघभंगा।
सुक्कलेस्सिएसु मिच्छादिटिप्पहुडि जाव खीणकसायवीदरागछदुमत्था केवडि खेत्ते, लोगस्स असंखेज्जदिभागे ॥ ७५॥
सुक्कलेस्सियमिच्छाइद्विणो जेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्ता, तेण सत्थाणसत्थाण-विहारवदिसत्थाण-वेदण-कसाय-वेउब्धिय-मारणंतिय-उववादपदेहि चदुण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणे । सेसगुणट्ठाणाणमोघभंगो । णवरि
है। पुनः संख्यात प्रतरांगुलप्रमाण राजुओंसे गुणित करनेपर उपपादक्षेत्रका प्रमाण होता है। यहांपर अपवर्तना जान करके करना चाहिए । गुणस्थानप्रतिपन्न तेजोलेश्यावाले जीवोंका क्षेत्र ओघक्षेत्रके समान है।
स्वस्थानस्वस्थान, विहारवत्स्वस्थान, वेदनासमुद्धात और कषायसमुद्धातगत पद्मलेश्यावाले मिथ्यादृष्टि जीव सामान्यलोक आदि तीन लोकोंके असंख्यातवे भागमें, तिर्यग्लोकके संख्यातवें भागमें और अढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुणे क्षेत्र में रहते हैं, क्योंकि, यहांपर तिर्यंचराशिकी प्रधानता है । वैक्रियिकसमुद्धात, मारणान्तिकसमुद्धात और उपपादपदको प्राप्त पालेश्यावाले मिथ्यादृष्टि जीव सामान्यलोक आदि चार लोकोंके असंख्यातवें भागमें और अढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुणे क्षेत्रमें रहते हैं, क्योंकि, यहांपर सानत्कुमार-माहेन्द्र देवराशिकी प्रधानता है । सासादनसम्यग्दृष्टि आदि गुणस्थानप्रतिपन्न जीवोंसे लेकर अप्रमत्तसंयत गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवर्ती पद्मलेश्यावाले जीवोंका क्षेत्र ओघके समान है।
शुक्ललेश्यावाले जीवोंमें मिथ्यादृष्टि गुणस्थानसे लेकर क्षीणकषायवीतरागछवस्थ गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवर्ती शुक्ललेश्यावाले जीव कितने क्षेत्र में रहते हैं ? लोकके असंख्यातवें भागमें रहते हैं ॥ ७५ ॥
चूंकि, शुक्ललेश्यावाले मिथ्यादृष्टि जीव पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण हैं, इसलिए वे स्वस्थानस्वस्थान, विहारवत्स्वस्थान, वेदनासमुद्धात, कषायसमुद्धात, वैक्रियिकसमुद्धात, मारणान्तिकसमुद्धात और उपपादपदकी अपेक्षा सामान्यलोक आदि चार लोकोंके मसंख्यातवें भागमें और अढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुणे क्षेत्रमें रहते हैं। सासादनसम्यग्दृष्टि आदि शेष गुणस्थानवर्ती शुक्ललेश्यावाले जीवोंका क्षेत्र ओघके समान है। विशेष बात यह है
१ शुक्ललेश्याना मिथ्यादृष्टयादिक्षीणकषायान्तान लोकस्यासंख्येयभागः। स. सि. १,८.
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