Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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खेत्तागमे दवखेत्तपरूवणं
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१, ३, १५. ] मारणंतियजीवे इच्छामो त्ति अण्णेगो पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो भागहारो वेदव्वो । देवगदी देवेसु मिच्छादिट्टि पहूडि जाव असंजदसम्मादिट्टित्ति केवड खेत्ते, लोगस्स असंखेज्जदिभागे ॥ १४ ॥
सत्थाणसत्थाण-विहारवदि सत्थाण- वेदण-कसाय - वेउच्चिय समुग्धादगद देवमिच्छादिट्ठी तिन्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे, तिरियलोयस्स संखेज्जदिभागे, माणुसखेत्तादो असंखेज्जगुणे । कुदो ? पधाणीकदजोइसियरासित्तादो | मारणंतिय उवव । दपरिणदमिच्छादिट्ठी तिन्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे णर- तिरियलोगेहिंतो असंखेजगुणे । एत्थ खेत्तपमाणं जाणिय वेद | सगुणद्वाणाणमोघभंगो ।
एवं भवणवासिय पहाड जाव उवरिम उवरिमगेवज्जविमाणवासियदेवाति ॥ १५ ॥
एदेण देस मासियसुत्तेण सूचिद-अत्थो वुच्चदे । तं जहा - सत्थाणसत्थाण-विहारव दिसत्थाण- वेदण-कसाय - वेउब्विय उववादपरिणदभवणवासियमिच्छादिट्ठी चदुण्हं लोगा
जीवों को लाना इट है, इसलिये एक दूसरा पल्योपमका असंख्यातवां भाग भागहार स्थापित करना चाहिये ।
देवगति में देवों में मिथ्यादृष्टि गुणस्थान से लेकर असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानके देव कितने क्षेत्र में रहते हैं ? लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र में रहते हैं ।। १४ ।
स्वस्थानस्वस्थान, विहारवत्स्वस्थान, वेदनास मुद्धात, कषायसमुद्धात और वैक्रियिकसमुद्धतिको प्राप्त हुए देव मिथ्यादृष्टि जीव सामान्यलोक आदि तीन लोकोंके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र, तिर्यग्लोकके संख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रमें और मानुषक्षेत्र से असंख्यातगुणे क्षेत्र में रहते हैं, क्योंकि, यहांपर ज्योतिष्क देवराशि प्रधान है। मारणान्तिकसमुद्धात और उपपादरूपले परिणत हुए मिथ्यादृष्टि देव सामान्यलोक आदि तीन लोकोंके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रमें और मनुष्यलोक तथा तिर्यग्लोकले असंख्यातगुणे क्षेत्र में रहते हैं । यहांपर क्षेत्र के प्रमाणको जानकर स्थापित करना चाहिये । देवोंके शेष गुणस्थानोंकी प्ररूपणा ओघ प्ररूपणा के समान है ।
भवनवासी देवोंसे लेकर उपरिम-उपरिम ग्रैवेयक के विमानवासी देवों तकका क्षेत्र इसीप्रकार होता है ॥ १५ ॥
अब इस देशामर्शक सूत्रसे सूचित हुए अर्थको कहते हैं । वह इसप्रकार है-स्वस्थान स्वस्थान, विहारवत्स्वस्थान, वेदनासमुद्धात, कषायसमुद्धात, वैक्रियिकसमुद्वात और उपपादरूपसे परिणत हुए भवनवासी मिध्यादृष्टि देव सामान्यलोक आदि चार लोकोंके १ देवगतौ देवानां सर्वेषां चतुर्षु गुणस्थानेषु लोकस्यासंख्येयभागः । स. सि. १८०
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