Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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११४ ]
छक्खंडागमे जीवाणं
[१, ३, ४८. मिच्छादिट्ठीहि सत्थाणसत्थाण-वेदण-कसाय-मारणंतिय-उववादगदेहि सबलोगम्हि अच्छणेण अणुहरंति । विहारवदिसत्थाण-घेउव्यियसमुग्धादगदा वि तिण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागे, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणे खेत्ते अच्छणं पडि अणुहरति । तदो चदुकसायमिच्छादिट्ठिणो दयट्ठियणएण ओघत्तमुवलभंते ।
सासणसम्मादिट्टिप्पहुडि जाव अणियट्टि त्ति केवडि खेत्ते, लोगस्स असंखेज्जदिभागे ॥४८॥
__ एत्थ सुत्ते ओघमिदि किण्ण वुत्तं ? ण एस दोसो, दव्यट्ठियणयावलंबणाभावादो । सो वि किमिदि णावलंबिदो ? पज्जवट्ठियसिस्साणुग्गहटुं । जदि एवं, तो दयट्ठियसिस्सा अणणुग्गहिदा होति ? ण, पुव्वुत्तसुत्तेण मिच्छादिहिपडिबद्धेण दवट्ठियसिस्साणमणु.
पदगत चारों कषायवाले मिथ्यादृष्टि जीव, स्वस्थानस्वस्थान, वेदनासमुद्धात, कषायसमुद्धात, मारणान्तिकसमुद्धात और उपपाद पदगत ओघमिथ्यादृष्टियोंके साथ सर्व लोक अवस्थानके द्वारा अनुकरण करते हैं। विहारवत्स्वस्थान और वैक्रियिकसमद्धातगत चारों कषायवाले मिथ्यादृष्टि जीव भी सामान्यलोक आदि तीन लोकोंके असंख्यातवें भागमें, तिर्यग्लोकके संख्यातवें भागमें और अढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुणे क्षेत्रमें रहनेकी अपेक्षा, विहारवत्स्वस्थान और वैक्रियिकसमुद्धातगत ओघमिथ्यादृष्टियोंके क्षेत्रका अनुकरण करते हैं, इसलिए चारों कषायवाले मिथ्यादृष्टि जीव द्रव्यार्थिकनयकी अपेक्षा ओघक्षेत्रताको प्राप्त होते हैं।
__ सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानसे लेकर अनिवृत्तिकरण गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवर्ती चारों कषायवाले जीव कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? लोकके असंख्यातवें भागमें रहते हैं ॥४८॥
शंका-इस सूत्रमें 'लोकके असंख्यातवें भागमें' इतने के स्थानपर 'ओघ' इतना ही पद क्यों नहीं कहा?
समाधान-यह कोई दोष नहीं, क्योंकि, यहांपर द्रव्यार्थिकनयका अवलम्बन नहीं किया गया है।
शंका-उस द्रव्यार्थिकनयका अवलम्बन क्यों नहीं किया गया ?
समाधान-पर्यायार्थिकनयी शिष्योंका अनुग्रह करने के लिए यहां द्रव्यार्थिकनयका ग्रहण नहीं किया गया।
__ शंका-यदि ऐसा है, तो द्रव्यार्थिकनयी शिष्य इस सूत्रसे अनुगृहीत नहीं किये गये हैं ?
समाधान -नहीं, क्योंकि, मिथ्यादृष्टियोंके क्षेत्रसे प्रतिबद्ध पूर्वोक्त सूत्रसे द्रव्यार्थिक
१ कषायानुवादेन क्रोधमानमायाकषायाणा लोभकषायाणां च मिथ्यादृष्टयाधनिवृत्तिवादरान्तानt xx सामान्योक्तं क्षेत्रम् । स. सि. १.८.
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