Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, ३, ६६.] खेत्ताणुगमे संजममग्गणाखेत्तपरूवणं
[१२५ ओघपरूणा गुणट्ठाणाणमभेदेण भेदेण च जा कदा, सा अत्थोघ-आदेसोधेहि दुविधा होदि । आदेसोघो वि गुणट्ठाणभेदेण चोदसविहो होदि । एत्थ ओघमिदि वुत्ते कदमस्स ओघस्स गहणं? आदेसोधस्स अवयवभूदमिच्छादिट्ठीणमोघस्त । कधमेदं लब्भदे ? पच्चासत्तीदो । अण्णेहि वि ओघेहि सह कथंचि पच्चासत्ती अत्थि त्ति भणिदे ण, अण्णेहि सह मिच्छादिट्ठीहि जेम पयरिसेण पच्चासत्तीए अभावादो। एदमत्थपदं सव्वत्थ जोजेयव्वं । असंजदचदुगुणहाणाणमेगजोगो किण्ण कदो ? ण, मिच्छादिट्ठीणं सेसगुणट्टाणेहि सह खेत्तेण पयरिसपच्चासत्तीए अभावादो ।
सासणसम्मादिट्ठी सम्मामिच्छादिट्ठी असंजदसम्मादिट्ठी ओघं ॥६६॥
एदेसिं तिण्हं गुणट्टाणाणं चदुण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागत्तणेण माणुसखेत्तादो असंखेजगुणत्तणेण पच्चासत्ती अत्थि त्ति एगजोगो कदो ।
एवं संजममग्गणा समत्ता । शंका-ओघप्ररूपणा गुणस्थानोंके अभेदसे और भेदसे जो की गई है, वह अर्थओघ और आदेश-ओघके भेदसे दो प्रकारकी होती है। आदेश-ओघ भी गुणस्थानोंके भेदसे चौन प्रकारका होता है। सो यहां ' ओघ' ऐसा सामान्यपद कहनेपर किस ओघका ग्रहण किया गया है?
समाधान - आदेश-ओघके अवयवभूत मिथ्याष्टियोंके ओघका ग्रहण किया गया है। शंका- यह अर्थ कैसे प्राप्त होता है ?
समाधान-प्रत्यासत्तिसे, अर्थात् सामीप्यसे, आदेश-ओघका ग्रहण किया गया है, यह जाना जाता है।
शंका-प्रत्यासत्ति तो कथंचित् अन्य भी ओघोंके साथ हो सकती है ?
समाधान-ऐसी शंकापर उत्तर देते हैं कि नहीं, क्योंकि, अन्य ओघोंके साथ मिथ्यादृष्टियोंके समान प्रकर्षतासे प्रत्यासत्तिका अभाव है।
यह अर्थपद सर्वत्र लगाना चाहिए। शंका-असंयत चारों गुणस्थानोंका एक योग (समास) क्यों नहीं किया ?
समाधान- नहीं, क्योंकि, मिथ्यादृष्टियोंकी शेष सास.दनसम्यग्दृष्टि आदि गुणस्थानोंके साथ क्षेत्रकी अपेक्षा प्रकर्षतम प्रत्यासत्तिका अभाव है।
अतंयतोंमें सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि जीव ओघके समान लोकके असंख्यातवें भागमें रहते हैं ॥६६॥
इन सूत्रोक्त तीनों ही गुणस्थानोंका सामान्यलोक आदि चार लोकोंके असंख्यातवें भागके साथ और मानुषक्षेत्रसे असंख्यातगुणे क्षेत्रके साथ प्रत्यासत्ति पाई जाती है, इसलिए उक्त तीनों गुणस्थानोंका एक योग इस सूत्रमें किया गया है।
इस प्रकार संयममार्गणा समाप्त हुई।
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