Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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११२] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, ३, ४४. वेनियसमुग्धादगदा पुरिसवेद-मिच्छादिट्ठी तिण्हं लोगाणमसंखेज्जदिमागे, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागे, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणे खेत्ते अच्छंति । मारणंतिय-उववादगदा तिण्हं लोगाणमसंखेज्जदिमागे, णर-तिरियलोगेहितो असंखेजगुणे । सासणसम्मादिहिप्पहुडि जाव अणियट्टि उवसामग-खवगा त्ति ओघभंगो।
णqसयवेदेसु मिच्छादिटिप्पहुडि जाव आणियट्टि त्ति ओघं ॥४४॥
सत्थाणसत्थाण-वेदण-कसाय-मारणतिय-उववादगदणqसयवेदमिच्छादिट्ठी सव्वलोए । विहारवदिसत्थाण-वेउब्धियसमुग्धादगदा तिण्हं लोगाणमसंखेजदिभागे, तिरियलोगस्स संखेजदिभागे । णवरि वेउव्वियसमुग्धादगदा तिरियलोगस्स असंखेजदिभागे। अढाइज्जादो असंखेज्जगुणे खेत्ते जेण अच्छंति तेण ओघमिदि घडदे । सासणसम्मादिटिप्पहुडि जाव आणियट्टी त्ति एदेसि पि परूवणा ओघतुल्ला ति ओधमिदि वुत्तं ।
तैजससमुद्धात और आहारकसमुद्धात नहीं होते हैं। स्वस्थानस्वस्थान, विहारवत्स्वस्थान, वेदनासमुद्धात, कषायसमुद्धात और वैक्रियिकसमुद्धातको प्राप्त हुए पुरुषवेदी मिथ्यादृष्टि जीव सामान्यलोक आदि तीन लोकोंके असंख्यातवें भागमें, तिर्यग्लोकके संख्यातवें भागमें और अढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुणे क्षेत्रमें रहते हैं। मारणान्तिकसमुद्धात और उपपादको प्राप्त पुरुषवेदी मिथ्यादृष्टि जीव सामान्यलोक आदि तीन लोकोंके असंख्यातवें भागमें.. और तिर्यग्लोकसे असंख्यातगुणे क्षेत्रमें रहते हैं। सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानसे लेकर अनिवृत्तिकरण उपशामक और अनिवृत्तिकरण क्षपक गुणस्थान तक पुरुषवेदी जीवोंके स्वस्थानादि पदोंका क्षेत्र ओघक्षेत्रके समान है।
नपुंसकवेदी जीवोंमें मिथ्यादृष्टि गुणस्थानसे लेकर अनिवृत्तिकरण गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवी जीवोंका क्षेत्र ओघक्षेत्रके समान है ॥४४॥
स्वस्थानस्वस्थान, वेदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात, मारणान्तिकसमुद्घात और उपपाद, इन पदोको प्राप्त नपुंसकवेदी मिथ्यादृष्टि जीव सर्व लोकमें रहते हैं। विहारवत्स्वस्थान और वैक्रियिकसमुद्घातगत वे ही जीव सामान्यलोक आदि तीन लोकोंके असंख्यातवें भागमें और तिर्यग्लोकके संख्यातवें भागमें रहते हैं । विशेष बात यह है कि वैक्रियिकसमुद्घात गत नपुंसकवेदी मिथ्यादृष्टि जीव तिर्यग्लोकके असंख्यातवें भागमें रहते हैं। तथा उक्त दोनों पदोको प्राप्त नपुंसकवेदी मिथ्यादृष्टि जीव, चूंकि अढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुणे क्षेत्र में रहते हैं, इसलिए सूत्रमें कहा गया 'ओघ ' यह पद घटित हो जाता है । सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानसे लेकर अनिवृत्तिकरण गुणस्थान तक भी इन नपुंसकवेदी जीवोंकी क्षेत्रप्ररूपणा ओधवर्णित क्षेत्रप्ररूपणाके तुल्य है, इससे भी सूत्रमें 'ओघ' ऐसा पद कहा गया है।
१ नपुंसकवेदाना मिथ्यादृष्टयाद्यनिवृत्तिबादरान्तानtxx सामान्योक्तं क्षेत्रम् ।स. सि. १,८.
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