Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, ३, ४३.] खेत्ताणुगमे वेदमग्गणाखेत्तपरूवणं
[१११ सजोगिकेवली केवडि खेत्ते, लोगस्स असंखेज्जेसु भागेसु सव्वलोगे वा ॥ ४२ ॥ सुगममेदं सुतं ।
___ एवं जोगमगणा समत्ता। वेदाणुवादेण इत्थिवेद-पुरिसवेदेसु मिच्छाइट्टिप्पहुडि जाव अणियट्टी केवडि खेत्ते, लोगस्स असंखेज्जदिभागे ॥४३॥
एदस्स अत्थो- सत्थाणसत्थाण-विहारवदिसत्थाण-वेदण-कसाय-वेउब्वियसमुग्धादगदा इत्थिवेदमिच्छाइट्ठी तिण्हं लोगाणमसंखेज्जदिमागे, तिरियलोगस्स संखेन्जदिभागे, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणे, पहाणीकददेवित्थिवेदरासित्तादो । मारणंतिय-उववादगदा तिण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे णर-तिरियलोगेहिंतो असंखेज्जगुणे । एत्थ ओवट्टणा देवोपतुल्ला । सासणसम्माइटिप्पहुडि जाव अणियदि त्ति ओघमंगो। णवरि असंजदसम्मादिविम्हि उववादो पत्थि । पमत्तसंजदे ण होंति तेजाहारा । सत्थाणसत्थाण-विहारवदिसत्थाण-वेदण-कसाय
कार्मणकाययोगी सयोगिकेवली भगवान् कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? लोकके असंख्यात बहु भागोंमें और सर्वलोकमें रहते हैं ॥४२॥ यह सूत्र सुगम है।
इसप्रकार योगमार्गणा समाप्त हुई। वेदमार्गणाके अनुवादसे स्त्रीवेदी और पुरुषवेदियोंमें मिथ्यादृष्टि गुणस्थानसे लेकर अनिवृत्तिगुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवी जीव कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? लोकके असंख्यातवें भागमें रहते हैं ।। ४३ ॥
___ इस सूत्रका अर्थ कहते हैं--स्वस्थानस्वस्थान, विहारवत्स्वस्थान, वेदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात और वैक्रियिकसमुद्घातगत स्त्रीवेदी मिथ्यादृष्टि जीव सामान्यलोक आदि तीन लोकोके असंख्यातवें भागमें, तिर्यग्लोकके संख्यातवें भागमें और अढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुणे क्षेत्रमें रहते हैं, क्योंकि, यहांपर देवगतिसम्बन्धी स्त्रीवेदराशिकी प्रधानता है। मारणान्तिकसमुद्घात और उपपादगत स्त्रीवेदी मिथ्यादृष्टि सामान्यलोक आदि तीन लोकोंके असंख्यातवें भागमें और नरलोक तथा तिर्यग्लोक, इन दोनों लोसे असंख्यातगुणे क्षेत्रमें रहते हैं। यहांपर अपवर्तना देवोंके ओघक्षेत्रके समान है । सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानसे लेकर अनिवृत्तिकरण गुणस्थानतकके स्त्रीवेदी जीवोंका क्षेत्र ओधके समान लोकका असंख्यातवां भाग है । विशेष बात यह है कि असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानमें स्त्रीवेदियोंके उपपादपद नहीं होता है। तथा प्रमत्तसंयत गुणस्थानमें
१ वेदानुवादेन खी'वेदानी मियादृष्टयायनिवृत्तिवादरान्तानां लोकस्यासंख्येयमागः । स. सि. १८.
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