Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, ३, ३१.] खेत्ताणुगमे जोगमग्गणाखेत्तपरूवणं
[१०३ जीवाणं व तेसिं तत्थ संभवं पडि विरोहाभावादो। मण-वचिजोगेसु उक्वादो. णस्थि । सासणसम्माइट्टिप्पहुडि जाव असमुग्धादसजोगिकेवलि त्ति मूलोघभंगो । पावरि सासणअसंजदसम्माइट्ठीणं उववादो पत्थि ।
कायजोगीसु मिच्छाइट्ठी ओघं ॥३०॥
सत्थाणसत्थाण-वेदण-कसाय-मारणंतिय-उववादगदा कायजोगिमिच्छाइट्टी सव्व. लोए । विहारवदिसत्थाण-वेउब्धियसमुग्घादगदा तिण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागे, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणे । एत्थ ओवट्टणा जाणिय कायवाः।
सासणसम्मादिटिप्पहुडि जाव खीणकसायवीदरागछदुमत्था केवडि खेत्ते, लोगस्स असंखेजदिभागे ॥३१॥
जोगाभावादो एत्थ अजोगीणमग्गहणं । सेसं सुगमं । हुए जीवोके समान अव्यक्त मनोयोग और वचनयोग मारणान्तिकसमुदातगत मूञ्छितअवस्थामें भी संभव है, इसमें कोई विरोध नहीं है।
___ मनोयोगी और वचनयोगी जीवों में उपपादपद नहीं होता है। सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानसे लेकर समुद्धातरहित सयोगिकेवली गुणस्थानतक प्रत्येक गुणस्थानवी मनोयोगी और वचनयोगी जीवोंका क्षेत्र मूलोघ क्षेत्रके समान है। विशेष बात यह है कि सासादनसम्यग्दृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि मनोयोगी और वचनयोगी जीवोंके उपपादपद नहीं होता है।
काययोगियोंमें मिथ्यादृष्टि जीवोंका क्षेत्र ओघके समान सर्वलोक है ॥ ३० ॥
स्वस्थानस्वस्थान, वेदनासमुद्धात, कषायसमुद्धात, मारणान्तिकसमुद्धात भौर उपपादगत काययोगी मिथ्यादृष्टि जीव सर्व लोकमें रहते हैं। विहारवत्स्वस्थान और वैक्रियिकसमुद्धातगत काययोगी मिथ्यादृष्टि जीव सामान्यलोक आदि तीन लोकोंके असंख्यात भागमें,तिर्यग्लोकके संख्यातवें भागमें और अढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुणे क्षेत्रमें रहते हैं। यहांपर अपवर्तना जान करके करना चाहिए।
सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानसे लेकर क्षीणकषायवीतरागछमस्थ. गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवर्ती काययोगी जीव कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? लोकके असंख्यातवें भागमें रहते हैं ॥३१॥
योगका अभाव होनेसे इस सूत्रमें अयोगिकेवलियोंका ग्रहण नहीं किया गया है। शेष सूत्रका अर्थ सुगम है।
१ काययोगिना मिण्यादृष्टयादिसयोगकेवल्यन्तानामयोगकेवलिनी च सामान्योक्तं क्षेत्रम् । स.सि. १, ८.
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