Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१०.] छक्खंडागमे जीवहाणं
[ १, ३, २५. अण्णखेत्तरं गंतूणुप्पज्जमाणजीवाणमइथोवत्तं कधमवगम्मदे ? चादरवाउक्काइयपज्जत्ता लोगस्स संखेज्जदिभागे इदि सुत्तादो। अण्णहा सुत्तस्स पुध आरंभो णिरत्थओ होज्ज, बादरवाउअपज्जत्तेसु अंतब्भावादो। वेउब्वियसमुग्धादगदा चदुण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे । अड्डाइज्ज ण विण्णायदे ।
वण'फदिकाइय-णिगोदजीवा बादरा सुहुमा पज्जत्तापज्जत्ता केवडि खेत्ते, सव्वलोगे ॥ २५॥
__ सत्थाण-वेदण-कसाय-मारणंतिय-उववादगदा वणप्फदिकाइया सुहुमवणप्फइकाइया तेसिं पज्जत्ता अपज्जत्ता च सत्थाण-वेदणसमुग्घादगदा तिण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे.तिरियलोगादो संखेज्जगुणे, माणुसखेत्तादो असंखेज्जगुणे। मारणंतिय-उववादगदा सव्वलोए। बादरा पुढवीओ चेव अस्सिदूण अच्छंति ति लोगस्स असंखेज्जदिभागे होति ।
शंका- अन्य क्षेत्रान्तरको जाकर उत्पन्न होनेवाले बादर वायुकायिक पर्याप्त जीव भत्यन्त थोड़े हैं, यह कैसे जाना जाता है ?
समाधान-'बादर वायुकायिक पर्याप्त जीव लोकके संख्यातवें भागमें रहते हैं,' इस सूत्रसे जाना जाता है कि राजुप्रतरप्रमाण मुखवाले और पांच राजु आयामवाले क्षेत्रके अतिरिक्त अन्य क्षेत्रमें जाकर उत्पन्न होनेवाले बादर वायुकायिक पर्याप्त जीव बहुत कम होते हैं । यदि ऐसा न माना जावे, तो इस सूत्रका पृथक् आरंभ निरर्थक हो जायगा, क्योंकि, फिर तो उनका बादर वायुकायिक अपर्याप्तोंमें अन्तर्भाव हो जायगा।
वैक्रियिकसमुद्धातगत वादर वायुकायिक पर्याप्त जीव सामान्यलोक आदि चार लोकोंके असंख्यातवें भागमें रहते हैं। अढ़ाईद्वीपसे अधिक क्षेत्रमें रहते हैं या कममें, यह जाना नहीं जाता।
वनस्पतिकायिक जीव, निगोद जीव, वनस्पतिकायिक बादर जीव, वनस्पतिकायिक सूक्ष्म जीव, वनस्पतिकायिक बादर पर्याप्त जीव, वनस्पतिकायिक बादर अपर्याप्त जीव, वनस्पतिकायिक सूक्ष्म पर्याप्त जीव, वनस्पतिकायिक सूक्ष्म अपर्याप्त जीव, निगोद बादर पर्याप्त जीव, निगोद बादर अपर्याप्त जीव, निगोद सूक्ष्म पर्याप्त जीव और निगोद सूक्ष्म अपर्याप्त जीव कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? सर्व लोकमें रहते हैं ॥ २५ ॥
स्वस्थान, वेदनासमुद्धात, कषायसमुद्धात, मारणान्तिकसमुद्धात और उपपादगत घनस्पतिकायिक, स्वस्थान और वेदनासमुद्धातगत सूक्ष्म वनस्पतिकायिक तथा उनके पर्याप्त और अपर्याप्त जीव सामान्यलोक आदि तीन लोकोंके असंख्यातवें भागमें, तिर्यग्लोकसे संख्यातगुणे और मानुषक्षेत्रसे असंख्यातगुणे क्षेत्रमें रहते हैं । मारणान्तिकसमुद्धात और उपपाद्गत उपर्युक्त जीव सर्व लोकमें रहते हैं। बादर वनस्पतिकायिक जीव पृथिवियोंका ही आश्रय लेकर रहते हैं, इसलिये वे लोकके असंख्यातवें भागमें रहते हैं।
१ आधारे थूला ओ । गो. जी. १८४.
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