Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, ३, २३.] खेत्ताणुगमे पुढविकाइयादिखेत्तपरूवणं
[९३ बादरवणप्फदिकाइयपत्तेयसरीरा तस्सेव अपज्जत्ता बादरणिगोदपदिद्विदा तस्सेव अपज्जता च बादरपुढवितुल्ला ।
बादरपुढविकाइया बादरआउकाइया बादरतेउकाइया बादरवणफदिकाइयपत्तेयसरीरा पज्जत्ता केवडि खेत्ते, लोगस्स असंखेज्जदिभागे ॥ २३ ॥
एदस्स सुत्तस्स अत्थो बुच्चदे। तं जहा- बादरपुढविपज्जत्ता सत्थाण-वेदणकसायसमुग्धादगदा चदुण्हं लोगाणमसंखेजदिभागे, अड्डाइज्जादो असंखेजगुणे । एत्थ
ओवट्टणं ठविय जोएदव्यं । मारणंतिय-उववादगदा तिण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे, परतिरियलोरोहितो असंखेज्जगुणे । एवं बादरआउकाइयपज्जत्ता । बादरवणप्फदिकाइयपत्तेयसरीर-बादरणिगोदपदिद्विदपज्जत्ताणमेवं चेव । णवरि बादरवणप्फदिकाइयपत्तेयसरीरपजत्ता वेदण-कसाय-सत्थाणेसु तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागे । एदेसिं रासीणं पलिदोवमस्स असंखेजदिभागमेत्ता जगपदराणि पदरंगुलेण खंडिदेयखंडमेत्तपमाणं होदि । ओगाहणा पुण
है। बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येक शरीर और उन्हीके अपर्याप्त जीव तथा बादर निगोदप्रतिष्ठित और उन्हींके अपर्याप्त जीव, बादर पृथिवीकायिक जीवों के समान हैं।
बादर पृथिवीकायिक पर्याप्त जीव, बादर अप्कायिक पर्याप्त जीव, बादर तेजस्कायिक पर्याप्त जीव और बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर पर्याप्त जीव कितने क्षेत्र में रहते हैं ? लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रमें रहते हैं ॥ २३ ॥
अब इस सूत्रका अर्थ कहते हैं। वह इसप्रकार है- स्वस्थानस्वस्थान, वेदनासमुद्धात और कषायसमुद्धातको प्राप्त हुए बादर पृथिवीकायिक पर्याप्त जीव सामान्यलोक आदि चार लोकोंके असंख्यातवे भागप्रमाण क्षेत्रमें और अढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुणे क्षेत्रमें रहते हैं। यहांपर अपवर्तनाकी स्थापना करके योजना कर लेना चाहिये। मारणान्तिकसमुद्धात और उपपादको प्राप्त हुए बादर पृथिवीकायिक पर्याप्त जीव सामान्यलोक आदि तीन लोकोंके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र में, तथा मनुष्य और तिर्यग्लोकसे असंख्यातगुणे क्षेत्रमें रहते हैं। बादर अ'कायिक पर्याप्त जीव भी स्वस्थानस्वस्थान आदि पदों में इसीप्रकार रहते हैं। बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येक शरीर पर्याप्त और बादर निगोद प्रतिष्ठित पर्याप्त जीवोंके पदोंका इसीप्रकार कथन करना चाहिये। इतनी विशेषता है कि वेदनासमुद्धात, कषायसमुद्धात और स्वस्थान पदगत बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर पर्याप्त जीव तिर्यग्लोकके संख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र में रहते हैं। पल्योपमके असंख्यातवेंभागप्रमाण जगप्रतरोंको प्रतरांगुलसे खंडित करके जो एक भाग लब्ध आवे उतना इन राशियोंका प्रमाण है। तथा अवगाहना धनांगुलके
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