Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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७६] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[ १, ३, १३. मणुसअपज्जत्ता केवडि खेत्ते, लोगस्स असंखेज्जदिभागे ॥१३॥
सत्थाण-वेदण-कसायसमुग्धादेहि परिणदा चदुण्हं लोगाणमसंखेजदिभागे, माणुसखेत्तस्स संखेजदिभागे णिचिदकमेण । विण्णासकमेण पुण असंखेन्जाणि माणुसखेत्ताणि । मारणंतियसमुग्घादो माणुसोपतुल्लो । मारणंतियखेत्तं ठविजमाणे सूचिअंगुलपढम-तदियवग्गमूले गुणेदूण सेढिम्हि भागे हिदे दव्वं होदि । तम्हि आवलियाए असंखेजदिभागमेत्त-उवक्कमणकालेण भागे हिदे एगसमयम्हि मरंतरासी होदि । तं पलिदोवमस्स असंखेजदिभागेण ओवट्टिय रूवूणेण गुणिदे एगसमयसंचिदमारणंतियरासी होदि । पुणो तमावलियाए असंखेजदिभाएण मारणंतिय उवक्कमणकालेण गुणिदे मारणंतियकालभतरे संचिदरासी होदि । पुणो अवरेण पलिदोवमस्स असंखेजदिभागेण भागे हिदे रज्जुआयामेण मुक्कमारणंतियरासी होदि । रज्जुआयदस्स विक्खंभो पदरंगुले पलिदोवमस्स असंखेअदिभागेण ओवट्टिदे होदि । एवमुववादस्स वि । णबरि एगसमयसंचिदो त्ति आवलियाए असंखेजदिभाएण गुणगारो अवणेदव्यो । विदियदंडे सेढीए संखेजदिभागायामेण मुक्क
लब्ध्यपर्याप्त मनुष्य कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रमें रहते हैं ॥ १३ ॥
स्वस्थानस्वस्थान, वेदनासमुद्धात और कषायसमुद्धातसे परिणत हुए लब्ध्यपर्याप्त मनुष्य निचितक्रमसे सामान्यलोक आदि चार लोकोंके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रमें और मनुष्यक्षेत्रके संख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रमें रहते हैं । विन्यासक्रमले तो असंख्यात मनुष्यक्षेत्र लब्ध्यपर्याप्त मनुष्योंका क्षेत्र है । मारणान्तिकसमुद्धातको प्राप्त हुए लन्ध्यपर्याप्त मनुष्यों का क्षेत्र ओघमनुष्यप्ररूपणाके समान है । मारणान्तिकक्षत्र स्थापित करनेपर सूच्यंगुलके प्रथम और तृतीय वर्गमूलको परस्पर गुणित करके जो राशि आवे उसका जगश्रेणीमें भाग देनेपर लब्ध्यपर्याप्त मनुष्योंका द्रव्यप्रमाण होता है । इसमें आवलीके असंख्यातवें भागमात्र उपक्रमणकालका भाग देनेपर एक समयमें मरनेवाले लब्ध्यपर्याप्त मनुष्योंकी राशिका प्रमाण होता है । इसे पल्योपमके असंख्यातवें भागसे भाजित करके और एक कम पल्योपमके असंख्यातवें भागले गुणित करनेपर एक समयमें संचित हुई मारणान्तिकसमुद्धातको प्राप्त लब्ध्यपर्याप्त मनुष्यराशि होती है। पुनः इस राशिको आवलीके असंख्यातवें भागप्रमाण मारणान्तिक उपक्रमणकालसे गुणित करनेपर मारणान्तिककालके भीतर सचित जीवराशिका प्रमाण होता है। पुन: इसे एक दूसरे पल्योपमके असंख्यातवें भागसे भाजित करनेपर राजप्रमाण आयामरूपसे किया है मारणान्तिकसमद्धात जिन्होंने, ऐसे लब्ध्यपर्याप्त मनुष्योंकी राशि होती है। प्रतरांगुलको पल्योपमके असंख्यातवें भागसे भाजित करनेपर राजुप्रमाण आयतक्षेत्रका विस्तार होता है इसीप्रकार उपपादका भी क्षेत्र समझना चाहिये । इतनी विशेषता है कि उपपादरराशि एक समयमें संचित होती है, इसलिये ऊपर जो आपलीके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार कह आये हैं वह निकाल देना चाहिये। अब दूसरे दंडमें जगश्रेणीके संख्यातवें भाग आयामरूपसे किया है मारणान्तिकसमुद्धात जिन्होंने, ऐसे
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