Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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७४ ] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[ १, ३, ११. एदस्स सुत्तस्स अत्थो बुच्चदे- सत्थाणसत्थाण-विहारवदिसत्थाण-वेदण-कसायवेउब्बियसमुग्घादगदमिच्छाइट्ठी केवडि खेत्ते ? चदुण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे, माणुसखेत्तस्स संखेज्जदिभागे । कुदो ? मणुसपज्जत्तमिच्छाइडिखेत्तग्गहणादो। सेढीए असंखेज्जदिभागमेत्तमणुसअपज्जत्ताणं खेत्तस्स गहणं किण्ण कीरदे ? ण, तस्स अंगुलस्स संखेज्जदिभागे संखेज्जंगुलेसु वा अवट्ठाणादो। मारणंतिय उववादगदमिच्छाइट्ठी केवडि खेत्ते १ तिण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे, तिरिय-णरलोरोहितो असंखेज्जगुणे । कुदो? पहाणीकदमणुसअपज्जनरासीदो । एवमुववादस्स वि । णवरि एगो आवलियाए असंखेज्जदिभागो दोण्णि पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागा च मणुसअपज्जत्तरासिस्स भागहारा हवेदव्या ।
सासणसम्माइट्ठी असंजदसम्माइट्ठी सत्थाणसत्थाण-विहारवदिसत्थाण-वेदण-कसाय. वेउव्वियसमुग्घादेहि परिणदा केवडि खेत्ते ? चदुण्हं लोगाणमसंखेजदिमागे, माणुसखेत्तस्स संखेजदिभागे। मारणंतिय-उववादगदा चदुण्हं लोगाणमसंखेजदिभागे, अड्डाइजादो
अब इस सूत्रका अर्थ कहते हैं- स्वस्थानखस्थान, विहार वत्स्वस्थान, वेदनासमुद्धात, कषायसमुद्धात और वैक्रियिकसमुद्धातको प्राप्त हुए मनुष्य, पर्याप्त मनुष्य और योनिमती मिथ्यादृष्टि मनुष्य कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? सामान्यलोक आदि चार लोकोंके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रमें और मनुष्यक्षेत्रके संख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रमें रहते हैं, क्योंकि, यहांपर मनुष्य पर्याप्त मिथ्याष्टियोंके क्षेत्रका ग्रहण किया है।
शंका-अपर्याप्त मनुष्य जगश्रेणीके असंख्यातवें भागप्रमाण हैं, अतएव यहां उनके क्षेत्रका ग्रहण क्यों नहीं किया है ?
समाधान-नहीं, क्योंकि, पर्याप्त मनुष्यका अवस्थान अंगुलके संख्यातवें भागमें अथवा संख्यात अंगुलोंमें पाया जाता है, इसलिये यहांपर अपर्याप्त मनुष्योंके क्षेत्रका ग्रहण नहीं किया है।
___ मारणान्तिकसमुद्धात और उपपादको प्राप्त हुए मनुष्य, पर्याप्त मनुष्य और योनिमती मिथ्यादृष्टि मनुष्य कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? सामान्यलोक आदि तीन लोकोंके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रमें और तिर्यग्लोक तथा मनुष्यलोकसे असंख्यातगुणे क्षेत्रमें रहते हैं, क्योंकि, यहांपर मनुष्य अपर्याप्तराशिकी प्रधानता है। इसीप्रकार उपपादका भी कथन करना चाहिये। इतनी विशेषता है कि मनुष्य अपर्याप्तराशिके एकवार आवलीके असंख्यातवें भागप्रमाण और दो वार पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण भागहार स्थापित करना चाहिये।
स्वस्थानस्वस्थान, विहारवत्स्वस्थान, वेदनासमुद्धात, कषायसमुद्धात और वैक्रियिकसमुद्धातसे परिणत हुए सासादनसम्यग्दृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि मनुष्य कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? सामान्यलोक आदि चार लोकोंके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रमें और मानुषक्षेत्रके संख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रमें रहते हैं। मारणान्तिकसमुद्धात और उपपादको प्राप्त हुए
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