Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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७८ ]
छक्खडागमे जीवद्वाणं
[ १, ३, १५.
णमसंखेजदिभागे, अड्डा इजादो असंखेजगुणे । तिरिक्ख- मणुसमिच्छादिट्टिणो कण्णागारेण ट्ठिदभवणवासियखेत्तेसु उप्पजमाणा वे विग्गहे कादूग सेढीए संखेजदिभागायामेण उप्पज्जता संभवति, तदो तिरियलोगादो असंखेज्जगुणेण उववादखेतेण होदव्यमिदि ? सच्चमेदं जइ सेठीए संखेज्जदिभागमेत्तायामो उववादखेत्तस्स लब्भइ । किंतु संखेज्ज - सूचिअंगुलमेत्तो चेव । एत्तो संखेज्जजोयणाणि हेट्ठा गंतूण भवणवासियविमाणाणमवाणावलंभादो | ण च तिरियलोगे सव्त्रत्थ तदवासा, तिरियलोगस्स मज्झिमासंखेज्जदिभागे चेव सिमत्थित्तदंसणादो । ण च उवरिमदेवे सुप्पज्ज माणतिरिक्खाणं व भवणवासिएसुपज्ज माणतिरिक्ख- मणुस्साणं सगुप्पत्तिदिसं मुच्चा तिरिच्छेण गमणमत्थि, कंडुज्जुवाए
वणवासियजगपणिधिमागंतून हेडावलिए भवगवासिएसुप्पत्तिदंसणादो | एदं कुदो वदे ? भवणवासियाणमुववाद खेत्तस्स तिरियलोगासंखेज्जदिभागत्तष्णहाणुववत्तदो । सच्छिदट्ठाणादो हेट्ठा ओयरिय भवणवासिए सुष्पज्जमाणाणमुववादखे तायामो सेटीए संखेज्जदिभागो लब्भदि त्ति तग्गहणं जुत्तं, तहा तत्थुष्पज्जमाणाणं सुड्डु त्थोवत्तादो | एं
असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रमें, और अढाईद्वीपसे असंख्यातगुणे क्षेत्र में रहते हैं ।
शंका - कर्णरेखा के आकारसे स्थित भवनवासियों के क्षेत्रोंमें उत्पन्न होनेवाले तिर्यंच और मनुष्य मिथ्यादृष्टि जीव दो विग्रह करके जगश्रेणीके संख्यातवें भागप्रमाण आयामरूपसे उत्पन्न होते हुए पाये जाता संभव है, इसलिये भवनवासियोंका उपपादक्षेत्र तिर्यग्लोकसे असंख्यात गुणा होना चाहिए ?
समाधान - यदि उपपादक्षेत्रका आयाम जगश्रेणी के संख्यातवें भागप्रमाण पाया जाता, तो यह उक्त कथन सत्य होता । किन्तु, उपपादक्षेत्रका आयाम संख्यात सूचयंगुलमात्र ही हैं, क्योंकि, इससे संख्यात योजन नीचे जाकर भवनवासियोंके विमानोंका अवस्थान नहीं पाया जाता है, तथा तिर्यग्लोक में भी सर्वत्र भवनवासियोंके आवास नहीं हैं, क्योंकि, तिर्यग्लोक के मध्यवर्ती असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रमें ही भवनवासी देवोंका अस्तित्व देखा जाता है । दूसरे, उपरिम देवोंमें उत्पन्न होनेवाले तिर्थचोके समान भवनवासियोंमें उत्पन्न होनेवाले तिर्यंच और मनुष्योंका अपनी उत्पत्तिकी दिशाको छोड़कर तिरछा गमन होता हो, ऐसा भी नहीं है, क्योंकि, मनुष्य और तिर्यचोंकी बाणके समान सीधी गति से भवनवासी लोकके समीप आकर अधस्तनश्रेणीमें स्थित भवनवासी देवों में उत्पत्ति देखी जाती है ।
शंका- यह कैसे जाना जाता है ?
समाधान - - भवनवासियोंका उपपादक्षेत्र तिर्यग्लोक के असंख्यातवें
अन्यथा न नहीं सकता है, इससे उक्त कथन जाना जाता है ।
अपने रहने के स्थान से नीचे जाकर भवनवासी देवों में उत्पन्न होनेवाले मनुष्य तिर्यचों के उपपादक्षेत्रका आयाम जगश्रेणी के संख्यातवें भागप्रमाण पाया जाता है, इसलिये उसका ग्रहण उपयुक्त है, किन्तु उक्त प्रकारसे उन में उत्पन्न होनेवाले जीव स्वरूप होते हैं ।
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भागप्रमाण
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