Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, ३, ५.]
खेत्ताणुगमे णेरइयखेत्तपरूवणं एत्थ ' आदेसेण ' गहणं ओघपडिसेधफलं । गदिगहणमिंदियादिपडिसेहफलं । अणुवादगहणं सुत्तस्स अकटिवुत्तपरूवणफलं । णिरयगदिणिदेसो देवगदियादिपडिसेधफलो। णेरइएसु त्ति वयणं तत्थतणपुढविकाइयादिपडिसेधफलं । लोगस्स असंखेज्जदिभागे इदि वुने सेसलोगाणं कधं गहणं होदि ? ण, खेत्त-फोसणसुत्ताणं देसामासिगत्तादो।
संपदि सत्थाणसत्थाण-विहारवदिसत्थाण-वेदण-कसाय-उब्बियसमुग्धादगद-मिच्छाइट्ठी केवडि खेत्ते, चदुण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणे । एदस्स अत्थपरूवणट्ठमेत्थोगाहणा वुच्चदे । तं जहा- पढमाए पुढवीए पढमपत्थडम्हि णेरइयाणमुस्सेधो तिणि हत्था । तेरहमपत्थडे सत्त धणू तिण्णि हत्था छ अंगुलाणि णेरइयाणमुस्सेधो होदि ।
मुह-भूमिविसेसम्हि दु उच्छेहभजिदम्हि सा हवे वडी। वडी इच्छागुणिदा मुहसहिदा सा फलं होदि ॥ १७ ॥
इस सूत्रमें आदेश पदके ग्रहण करनेका फल ओघका प्रतिषेध करना है। गति पदके ग्रहण करनेका फल इन्द्रियादिका प्रतिषेध करना है। अनुवाद पदके ग्रहण करनेका फल सूत्रके अकर्तृकत्वका प्ररूपण करना है। नरकगति पदके निर्देश करनेका फल देवगति आदिका प्रतिषेध करना है । नारकियों में इसप्रकारके वचनके देनेका फल वहांके क्षेत्रमें रहनेवाले पृथिवीकायिक आदिका प्रतिषेध करना है।
शंका-लोकके असंख्यातवें भागमें रहते हैं, केवल इतना कहनेपर शेष लोकोंका ग्रहण कैसे हो सकता है?
__ समाधान नहीं, क्योंकि, क्षेत्र और स्पर्शन अनुयोगद्वारके सूत्र देशामर्शक हैं, इसलिये 'लोकके असंख्यातवें भागमें रहते हैं। इतने पदके कहनेसे शेष लोकोंका भी ग्रहण हो जाता है।
अब विशेष पदोंकी अपेक्षा मिथ्यादृष्टि नारकियोंका क्षेत्र कहते हैं- स्वस्थानखस्थान, विहारवत्स्वस्थान, वेदनासमुद्धात, कषायसमुद्धात और वैक्रियिकसमुद्धातको प्राप्त हुए मिथ्यादृष्टि नारकी जीव कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? सामान्यलोक आदि चार लोकोंके असंख्यातचे भागप्रमाण क्षेत्र में रहते हैं और अढ़ाईद्वीपप्रमाण मानुषलोकसे संख्यातगुणे क्षेत्र में रहते हैं। अब इसके अर्थके प्ररूपण करनेके लिये यहांपर नारकियोंकी अवगाहना कहते हैं । वह इसप्रकार है-- पहली पृथिवीके पहले पाथड़ेमें नारकियोंका उत्सेध तीन हाथ है। तेरहवें पाथड़ेमें सात धनुष, तीन हाथ और छह अंगुल नारकियोंका उत्सेध है।
भूमिमेंसे मुखको घटाकर उत्सेधका भाग देनेपर जो लब्ध आवे वह वृद्धिका प्रमाण होता है । अब जिस पटलके नारकियोंके उत्सेधका प्रमाण लाना हो उसे इच्छा मानकर उससे
- १सत्त-त्ति-छदंड-हत्थंगुलाणि कमसो हवंति घम्माए। चरिमिंदयम्मि उदओ। ति.प.२,२१७. रयणप्पभाए नेरइयाणं xx सरीरोगाहणा xxx उकासेणं सत्त धणूई तिणि रयणीओ छच्च अंगुलाई। जीवाभि.३, २, १२.
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