Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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६२ ]
छक्खंडागमे जीवाणं
[ १, ३, ५.
छट्ठी पुढवी तदियपत्थडणेरइयाणमुस्सेधो अड्डाइज्जसदधणूणि । एदं भूमिं करिय सेसदोहं पत्थडाणमुस्सेधो आणदव्वो । तस्स पमाणमेदं --
२
३
२५०
तेसिं पमाणमेदं
प्रस्तार
धनुष
हस्त
अंगुल
धनुष
१
१६६
२
१६
सत्तमा पुढवीए रइयाणमुस्सेधो पंचसदधणूणि ।
२०८
१
८
प्रस्तार १
धनुष
एत्थ रइए उस्से अट्टमभाग विक्खंभो त्ति कट्टु परिट्ठयमद्धं करिय विक्खंभद्वेण गुणियुस्सेहेण गुणिदे णेरइयाणमोगाहणा होदि । ओगाहणं पडि सत्तमपुढवी
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छठवीं पृथिवीके तीसरे पाथड़े में नारकियों का उत्सेध ढाईसौ धनुष है। इसे भूमिरूपसे स्थापित करके शेष दो पाथड़ोंके नारकियोंका उत्सेध ले आना चाहिये । उसका प्रमाण यह है- (देखो मूलका नकशा
है
विशेषार्थ -- छठी पृथिवी में मुखका प्रमाण १२५ धनुष और भूमिका प्रमाण २५० । तथा प्रतिपटल वृद्धिका प्रमाण ४१ धनुष, २ हाथ और १६ अंगुल है । सातवीं पृथिवीके नारकियोंका उत्सेध पांचसौ धनुष है । उसका प्रमाण यह है( देखो मूलका नक्शा ) ।
यहां नारकियों में उत्सेधके आठवें भागप्रमाण विष्कम्भ होता है. ऐसा समझकर, विष्कम्भकी परिधिको आधा करके, और विष्कम्भके आधेसे गुणित करके उत्सेधसे गुणित करने पर नारकियोंकी अवगाहना होती है । अवगाहनाकी अपेक्षा सातवीं पृथिवी प्रधान है,
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बारमुत्तरसयमेक्कं अंधयम्मि दो हत्था | एक्कं कोदंडसयं अम्महियं पंचवीसरूवेहिं । धूमप्पहाए चरिमिंदयम्मि तिमिसम्म उच्छे हो । ति प. २, २६१-२६५.
१ छट्ठीए X अड्डाइज्जाई घणुसयाई । जीवामि ३, २, १२.
२ एक्कत्तालं दंडा हत्थाई दोणि सोलसंगुलया । छट्टीए व सहाए परिमाणं हाणिवड्डीए ॥ छासट्ठी अधियसयं कोदंडा दोण्णि होंति हत्था य । सोलस पव्वा य पुढं हिमपडलगदाण उच्छेदो || दोणि सयाणि अड्डा उत्त दंडाणि अंगुलाणं च । बत्तीसं छट्ठीए वंदलठिदजीव उच्छे हो ॥ पण्णासम्महियाणिं दोणि सयाणि सरासणाणि च । लल्लंकणामइंदयठिदाण जीवाण उच्छे हो । ति प. २, २६६-२६९.
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३ सत्तमाए X पंचधणुसया । जीवामि ३.२, १२.
४ पंचसयाई घणूणि सत्तम अवणीइ अवधिठाणम्मि । सव्वेसिं णिरयाणं का उच्छे हो जिणादेसी ॥ ति. प. २, २७०.
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