Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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छक्खंडागमे जीवाणं
[ १, ३, ५.
rate गाहाए सेसएक्कारसपत्थडणेरइयाण मुस्सेधा आणेयव्वा । तेसिं पमाणमेदं
'प्रस्तार १
२
३
५
७ ८
९ १० ११
धनुष ०
१
१
४
४
५
६
७
हस्त
१
२
२
१
३
१ ० २ ० ३
अंगुल
० ८३ १७ १३ १० १८३ ३
११३ २० ४३ | १३ | २१३ ६
५८ ]
४
२
६
३
० २
वृद्धि गुणित कर दो, और मुखका प्रमाण जोड़ दो। इसका जो फल होगा वही इच्छित पाथड़ेके नारकियों का उत्सेध समझना चाहिये ॥ १७ ॥
विशेषार्थ - यद्यपि द्वितीयादि नरकों में प्रथमादि नरकोंके अन्तिम पटलके नारकियोंका उत्सेध मुख हो जाता है, परन्तु प्रथम नरक में पहले पाथड़ेके ही नारकियोंका उत्सेध मुख रहेगा । अतएव उक्त गाथाके नियमानुसार पहले नरकके पहले पाथड़ेके नारकियोंका उत्सेध नहीं निकाला जा सकता है । पहले नरक में पदका प्रमाण १२ और शेष नरकोंमें जहां जितने पाथड़े होंगे वहां उतना पदका प्रमाण रहेगा। पहले नरक में दूसरा पाथड़ा पहला और अन्तिम पाथड़ा बारहवां गिना जायगा ।
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७
उदाहरण -- प्रथम नरकमें मुखका प्रमाण ३ हाथ और भूमिका प्रमाण ७ धनुष ३ हाथ, ६ अंगुल होता है । एक धनुषमें ४ हाथ, और १ हाथमें २४ अंगुल होते हैं। इस प्रमाणके अनुसार मुखके अंगुल ३x२४ = ७२ तथा भूमिके अंगुल ७x४+३x२४+६= ७५० १३ ७२ = ६५ = ५६३ अं. हुए । उक्त गाथानुसार इसकी प्रक्रिया करनेपर ७५० २ हाथ ८३ अंगुल होते हैं, यह प्रथम पृथिवीके प्रति पटल में वृद्धिका प्रमाण है ।
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1
अब यदि हमें प्रथम नरकके पांचवें पटलका उत्सेधप्रमाण निकालना है तो पूर्वोक्त नियमानुसार ५६३ अंगुलको ४ से गुणितकर प्रथम पटलके उत्सेधका प्रमाण उसमें जोड़ देना चाहिये । १३३ × ४ + ७२ = २२६ + ७२ = २९८ अं. = १२ हा. १० अं. = ३ ध १० अं. यही प्रथम पृथिवीके पांचवें पटलके नारकियोंके उत्सेधका प्रमाण है ।
इस उपर्युक्त गाथा के नियमानुसार पहले नरकके पहले और तेरहवें पाथड़ेके अतिरिक्त शेष ग्यारह पाथड़ेके नारकियोंका उत्सेध ले आना चाहिये। उन अवगाहनाओंका प्रमाण यह है- (देखो मूलका नकशा ) ।
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१ प्रतिषु केवलमङ्का एव निहिताः न प्रस्तारादिपदानि । तानि तु सुबोधार्थमस्माभिः सर्वत्र योजितानि । २ रयणष्पहपुर्त्याए उदओ सीमंतणामपडलाम्म | जीवाणं इत्थतियं सेसेसुं हाणिवडीओ || आदी अंते सोहिय रूऊणद्धाहिदम्मि हाणिचया । मुहसहिदे खिदिएद्धे नियणियपदरेसु उच्छेदो ॥ हाणिचयाण पमाणं घम्माए होति दोणि इत्थाई । अट्ठगुलाणि अंगुल भागो दोहिं वित्तो य ॥ एकधणुमेक्कहत्थो सत्तरसंगुलदलं च णिरयम्मि | इगिदंडोतियहत्थो सत्तरसं अंगुलाणि रोरुगए ॥ दो दंडा दो हत्था मंतम्मि दिवडूमंगुलं होदि । उन्मंते दंडतियं दहंगुलाणि च उच्छे हो ॥ तिय दंडा दो हत्था अट्ठारह अंगुलाणि पव्वद्धं । संभंतणामईंदय उच्छे हो पढमपुढवीए ॥
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