Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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३८) छक्खंडागमे जीवहाणं
[१, ३, २. अड्डाइजम्मि संखेजपमाणघणंगुलदंसणादो।
वेउब्वियसमुग्धादगदमिच्छाइट्ठी केवडि खेत्ते, लोगस्स असंखेजदि भागे, दोण्हं लोगाणमसंखेजदिभागे, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागे, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणे । एत्थ पुव्वं व ओवट्टणा कायव्वा । णवरि वेउब्वियसमुग्घादस्स जोदिसियरासी सत्तदंडुस्सेहो पहाणो, तेण जोइसियदेवाणं संखेज्जदिभागस्स संखेज्जघणंगुलाणि गुणगारो ठवेयव्यो । कुदो ? संखेज्जजोयणसहस्सं विउव्यमाणदेवाणमुवलंभादो । असंखेज्जजोयणाणि जिरंमिय विउव्वंता देवा अत्थि ति चे ण, तेसिं देवाणमसंखेज्जदिभागत्तादो । सगोहिखेत्तमेत्तं सव्वे देवा विउव्वंति त्ति के वि भणंति', तं ण घडदे, 'तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागे' त्ति वक्खाणादो । मिच्छाइट्ठिस्स सेस-तिणि विसे सणाणि ण संभवंति, तक्कारणसंजमादिगुणाणमभावादो । मिच्छाइट्ठिस्स सत्थाणादी सत्त विसेसा सुत्तेण अणुद्दिट्ठा
द्वीपमें संख्यात प्रमाण घनांगुल ही देखे जाते हैं।
वैक्रियिकसमुद्धातको प्राप्त हुए मिथ्यादृष्टि जीव कितने क्षेत्रमें रहते हैं? सर्व लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रमें, ऊर्ध्वलोक और अधोलोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रमें, तिर्य. ग्लोकके संख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रमें तथा अढ़ाई द्वीपसे असंख्यातगुणे क्षेत्रमें रहते हैं। यहां पर अपवर्तना पहलेके समान कर लेना चाहिये । इतनी विशेषता है कि वैक्रियिकसमुद्धातमें सात धनुष उत्सेधरूप अवगाहनासे युक्त ज्योतिष्कदेवराशि प्रधान है, इसलिये ज्योतिष्क देवोंके संख्यातवें भागप्रमाण वैक्रियिकसमुद्धातयुक्त राशिका क्षेत्र लाने के लिये संख्यात घनांगुल गुणकार स्थापित करना चाहिये, क्योंकि, संख्यात हजार योजनप्रमाण विक्रिया करनेवाले देव पाये जाते हैं।
शंका- असंख्यात योजन क्षेत्रको रोककर विक्रिया करनेवाले भी देव पाये जाते हैं ? . समाधान-नहीं, क्योंकि, असंख्यात योजनप्रमाण बिक्रिया करनेवाले देव सामान्य देवोंके असंख्यातवें भागमात्र ही होते हैं। कितने ही आचार्य ऐसा कहते हैं कि सभी देव अपने अवधिज्ञान के क्षेत्रप्रमाण विक्रिया करते हैं । परन्तु उनका यह कथन घटित नहीं होता है, क्योंकि, वैक्रियिकसमुद्धातको प्राप्त हुई राशि 'तिर्यग्लोकके संख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र में रहती है। ऐसा व्याख्यान देखा जाता है।
. मिथ्यादृष्टि जीवराशिके शेष तीन विशेषण अर्थात् आहारकसमुद्धात, तैजससमुद्धात और केवलिसमुद्धात संभव नहीं हैं, क्योंकि, इनके कारणभूत संयमादि गुणोंका मिथ्याष्टिके भभाव है।
शंका- स्वस्थानादि सात विशेषण सूत्रमें नहीं कहे गये हैं, फिर भी वे मिथ्यादृष्टि
१ णियणियओहिक्खेतं गाणारूवाणि तह विकुध्वंता। पूरति असुरपहुदी भाषणदेवा दस वियप्पा ॥ ति.प.३.१८२.
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