Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
View full book text
________________
छक्खंडागमे जीवाणं
[ १, ३, ४.
सजोगिकेवली केवड खेत्ते, लोगस्स असंखेज्जादिभागे, असंखेजेसु वा भागेषु, सव्वलोगे वा ॥ ४ ॥
४८ ]
एत्थ सजोगिकेवलस्स सत्याण सत्याण-विहारव दिसत्थाणाणं पमत्तभंगो। दंडगदो केवली केवडि खेत्ते, चउन्हं लोगान मसंखेज्जदिभागे, अड्डाइजादो असंखेज्जगुणे । तं कथं ? अट्टुत्तरसदपमानंगुलाणि उस्सेधो उक्करसोगाहण केवली हो । तस्स णवमभागो विक्खंभो १२ एत्तिओ होदि । तस्स परिट्ठओ सत्ततीस अंगुलाणि पंचाणउदि - तेरस सदभागा ३७९१३ । इमं विक्खंभचउन्भागेण गुणिदे मुहपदरंगुलाणि होंति । एदाणि देसूणचोदसरज्जूहि गुणिदे दंडखेचं होदि । एदं संखेजरूवगुणं तेरासियकमेण चदुहि लोगेहि
इसप्रकारका भाव पाया जाता है वहां वैसा ग्रहण किया है । परन्तु यहांपर अर्थात् क्षपक और उपशामक गुणस्थानों में अवस्थानमात्रका ग्रहण किया गया है ।
सयोगिकेवली जीव कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र में, अथवा लोकके असंख्यात बहुभागप्रमाण क्षेत्र में, अथवा सर्वलोकमें रहते हैं || ४ ||
यहां पर सयोगिकेवलीका स्वस्थानस्वस्थान और विहारवत्स्वस्थान क्षेत्र प्रमत्तसंयतोंके स्वस्थानस्वस्थान और विहारवत्स्वस्थान क्षेत्रके समान होता है । दंडसमुद्वातको प्राप्त हुए केवली जीव कितने क्षेत्र में रहते हैं ? सामान्यलोक आदि चार लोकोंके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रमें और अढ़ाई द्वीपसंबन्धी लोकसे असंख्यातगुणे क्षेत्रमें रहते हैं 1
शंका - दंडसमुद्धातको प्राप्त हुए केवलियोंका उक्त क्षेत्र कैसे संभव है ?
समाधान - उत्कृष्ट अवगाहनासे युक्त केवलियोंका उत्सेध एकसौ आठ प्रमाणांगुल होता है, और उसका नौंवा भाग अर्थात् बारह १२ प्रमाणांगुल विष्कंभ होता है । इसकी परिधि सैंतीस अंगुल और एक अंगुलके एकसौ तेरह भागों में से पंचानवे भाग प्रमाण ३७ ११३ होती है । इसे विष्कंभ बारह अंगुलके चौथे भाग तीन अंगुलोंसे गुणित करने पर मुखरूप बारह अंगुल लंबे और बारह अंगुल चौडे गोल क्षेत्रके प्रतरांगुल होते हैं । इन्हें कुछ कम चौदह राजुओं से गुणित करनेपर दंडक्षेत्रका प्रमाण आता है । यह एक केवलीके दंडक्षेत्रका
।
प्रमाण हुआ ।
प्रमाण
क्षेत्रफल
३६
+
उदाहरण – व्यास १२ अंगुलः १२x१६ + १६ ११३ ४२७६ १२ X ११३ ४
१
अतएव दंडसमुद्धातगत केवलीका क्षेत्रप्रमाण
अतएव गाथा नं. १४ के अनुसार उसकी परिधिका ४२७६ ११३
९५
= ३७ अंगुल ।
११३.
Jain Education International
=
( व्यासका चतुर्थांश )
=
१२८२८
११३
१२८२८
११३
For Private & Personal Use Only
प्रतरांगुल ।
x देशोन १४ राजु |
I
www.jainelibrary.org