Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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पृ.नं.
३२४
(४८)
षट्खंडागमकी प्रस्तावना क्रम नं. विषय पृ. नं. " नं. विषय
२६ पुद्गलपरिवर्तनके स्वरूपका ओघसे कालानुगमनिर्देश ३२३-३५७ बोधक यंत्र
३३० १८ मिथ्यादृष्टि जीवोंका नाना
२७ अगृहीत, मिश्र और गृहीत जीवों की अपेक्षा कालनिरूपण ३२३,
___ संबंधी तीनों प्रकारके कालोंका १९ एक जीवकी अपेक्षा कालके
___ सकारण अल्पबहुत्व-निरूपण ३३१ तीन भेदोंका सदृष्टान्त उल्लेख,
२८ नोकर्मपुद्गल परिवर्तनके समान ही और प्रकृतमें सादि-सान्त
कर्म पुद्गलपरिवर्तनके स्वरूपका कालकी अपेक्षा जघन्यकालका
उल्लेख और तत्सम्बन्धी निरूपण
विशेषताओंका निरूपण
३३२ २० सासादनसम्यग्दृष्टि जीवको भी
२९ क्षेत्र, काल, भव और भावमिथ्यात्व गुणस्थानमें पहुंचा
पुद्गलपरिवर्तनोंका सूत्रगाथाओं कर उसका जघन्यकाल क्यों
द्वारा स्वरूप-निरूपण
३३३.३३४ नहीं बतलाया, इस शंकाका
३० एक जीवकी अपेक्षा पांचों परि- समाधान
३२५
वर्तनवारोंका अल्पबहुत्व २१ एक जीवकी अपेक्षा उत्कृष्ट
३१ पांचों परिवर्तनोंका कालसंबंधी . सादि-सान्त मिथ्यात्वकालका
अल्पबहुत्व निरूपण
|३२ सादि-सान्त मिथ्यात्वके कुछ २२ अर्धपुद्गलपरिवर्तनका स्वरूप
कम अर्धपुद्गलपरिवर्तन कालका बतलाते हुए पांच प्रकारके
निदर्शन
३३५ परिवर्तनोंका नामोल्लेख कर
३३ सम्यक्त्वकी उत्पत्ति और मिथ्याद्रव्यपरिवर्तनका विशद स्वरूप
त्वका विनाश, इन दोनों विभिन्न निरूपण
३२५-३३६
कार्योंका एक समय कैसे हो २३ यदि जीवने आज तक भी
सकता है; इस शंकाका समाधान समस्त पुद्गल भोगकर नहीं
३४ मिथ्यात्व नाम पर्यायका है, वह छोड़े हैं, तो ' सव्वे वि पोग्गला खलु'
पर्याय उत्पाद विनाशात्मक है, इत्यादि सूत्र-गाथाके साथ
क्योंकि, उसमें स्थितिका अभाव विरोध क्यों नहीं होगा, इस
है। और यदि उसकी स्थिति शंकाका समाधान
भी मानते हैं, तो मिथ्यात्वके २४ प्रथम समयमें गृहीत पुद्गल-पुंज
द्रव्यपना प्राप्त होता है, इस द्वितीय समयमें निर्जीण हो,
शंकाका समाधान अकर्मरूप अवस्थाको धारण कर, ३५ अनन्तका स्वरूप और उसके पुनः तृतीय समयमें उसी जीवमें
प्रमाणमें आर्षगाथाका उल्लेख __३३८ नोकर्मपर्यायसे परिणत हो ३६ व्ययसहित अर्धपुद्गलपरिवर्तन जाता है, यह कैसे जाना, इस
आदि राशियोंके अनन्तपना शंकाका समाधान
३२७ किस अपेक्षासे है, इसका स्पष्टी. २५ पुद्गलपरिवर्तनकालके तीन
करण -प्रक्रारोंका स्वरूप ............. ३२८/३७ अक्षय अनन्त राशिका विवेचन .. ३३९
३२६
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