Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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छक्खडागमे जीवाणं
[ १, ३, १.
लद्धागमववए सखओवसमविसिट्रुजीवदव्वावलंबणेण वा तस्स तदविरोहा | णोआगमदो दव्वक्खेतं तिविहं, जाणुगसरीरं भवियं तव्वदिरित्तं चेदि । तत्थ जाणुगसरीरं तिविहं, भवियं वट्टमाणं समुज्झादमिदि । समुज्झादं पि तिविहं चुदं चहदं चत्तदेहमिदि । भवदु पुव्विल्लस्स दव्वखेत्तागमत्तादो खेत्तववएसो, एदस्स पुण सरीरस्स अणागमस्स खेत्तवनएसो णं घडदि ति ? एत्थ परिहारो बुच्चदे । तं जधा - क्षियत्यक्षैषीत्क्षेष्यत्यस्मिन् द्रव्यागमो भावागमो वेति त्रिविधमपि शरीरं क्षेत्रम्, आधारे आधेयोपचाराद्वा । तत्थ भवियं खेतपाहुडजाणगभावी जीवो णिहिस्सदे । कथं जीवस्स खेत्तागमखओवस मरहिदत्तादो अणागमस्स खेत्तववएसो १ न, क्षेष्यत्यस्मिन् भावक्षेत्रागम इति जीवद्रव्यस्य पुरैव क्षेत्रत्वसिद्धेः । जाणुगसरीर भवियवदिरित्तदव्वखेत्तं दुविहं, कम्मदव्वखेत्तं णोकम्मदव्वखेत्तं चेदि । तत्थ कम्मदव्वक्खेत्तं णाणावरणादिअट्ठविहकम्मदव्वं । कधं कम्मस्स खेत्तववएसो ?
अथवा, प्राप्त हुई है आगमसंज्ञा जिसको ऐसे क्षयोपशमसे युक्त जीवद्रव्यके अवलम्बनसे जीवके आगमद्रव्य क्षेत्ररूप संशाके होने में कोई विरोध नहीं आता है ।
शायक शरीर, भव्य और तद्व्यतिरिक्तके भेद से नोआगमद्रव्यक्षेत्र तीन प्रकारका है । उनमें से शायकशरीर तीन प्रकारका है। भावी ज्ञायकशरीर, वर्तमान ज्ञायकशरीर और अतीत शायकशरीर । इनमें से अतीत ज्ञायकशरीर भी च्युत, व्यावित और त्यक्तके भेदले तीन प्रकारका है ।
शंका- द्रव्यक्षेत्रागम के निमित्तसे पूर्वके शरीर को क्षेत्रसंज्ञा भले ही रही आवे, किन्तु इस अनागमशरीरके क्षेत्रसंज्ञा घटित नहीं होती है ?
समाधान - उक्त शंकाका यहां परिहार कहते हैं । वह इस प्रकार है - जिसमें द्रव्यरूप आगम अथवा भावरूप आगम वर्तमानकालमें निवास करता है, भूतकालमें निवास करता था, और आगामी कालमें निवास करेगा; इस अपेक्षा तीनों ही प्रकारका शरीर क्षेत्र कहलाता है । अथवा, आधाररूप शरीर में आधेयरूप क्षेत्रागमका उपचार करनेसे भी क्षेत्रसंज्ञा बन जाती है ।
नोआगम द्रव्यक्षेत्र के तीन भेदोंमेंसे जो आगामी कालमें क्षेत्रविषयक शास्त्रको जानेगा, ऐसे जीवको भावी नोआगमद्रव्यक्षेत्र कहते हैं ।
शंका - जो जीव क्षेत्रागमरूप क्षयोपशम से रहित होनेके कारण अनागम है, उस जीवके क्षेत्रसंज्ञा कैसे बन सकती है ?
समाधान- -नहीं; क्योंकि, 'भावक्षेत्ररूप आगम जिसमें निवास करेगा ' इस प्रकार की निरुक्तिके बल से जीवद्रव्यके क्षेत्रागमरूप क्षयोपशम होने के पूर्व ही क्षेत्रपना सिद्ध है । शायकशरीर और भावीसे भिन्न जो तद्व्यतिरिक्त नोआगमद्रव्यक्षेत्र है, वह कर्मद्रव्यक्षेत्र और नोकर्मद्रव्यक्षेत्रके भेदसे दो प्रकारका है । उनमेंसे ज्ञानावरणादि आठ प्रकार के कर्मद्रव्यको कर्मद्रव्यक्षेत्र कहते हैं ।
शंका - कर्मद्रव्यको क्षेत्रसंज्ञा कैसे प्राप्त हुई ?
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