Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, ३, २. ]
खैत्ताणुगमे जीवमहल्लो गाहणापरूवणं
[ ३५
विक्खंभद्धं बाहल्लं' । एदे तिणि वि परोप्परं गुणिदे उस्सेधजोयणघणस्स संखेज्जदिभागो आगच्छदि । तं पण्ण रहसद छत्तीस रूवेहि घणीकदेहि गुणिदे पमाणघणंगुलाणि होति । बारह जोयणायाम-चदुजोयणमुह संखखेत्तफलं -
देण सुत्तेण आणिय मुहहीणुस्से इस हिदुस्सेहचदुब्भागेण गुणिय उस्सेहघणजोयणाणि आणि पुव्युत्तगुणगारेण गुणिदे पमाणघणंगुलाणि होति' । जोयणसहस्तायाम
व्यासं तावत्कृत्वा वदनदलोनं मुखार्धवर्गयुतम् ।
द्विगुणं चतुर्विभक्तं सनाभिकेऽस्मिन् गणितमाहुः ॥ १३ ॥
लाने के लिये इन तीनोंके परस्पर गुणित करनेपर उत्सेधयोजनके घनका संख्यातषां भाग लब्ध आता है । इसे पन्द्रहसौ छत्तीस के घनसे गुणित करनेपर गोम्हीके घनरूप क्षेत्रके प्रमाणगुल आ जाते हैं ।
उदाहरण - गोहीका आयाम रेट X = १२ × ३६२३८७८६५६
X
बारह योजन आयामवाले और चार योजन मुखवाले शंखक्षेत्रका क्षेत्रफल -
व्यासको उतनी ही बार करके अर्थात् व्यासका जितना प्रमाण है उतनीवार व्यासको रखकर जोड़ने पर जो लब्ध आवे उसमें से मुखके आधे प्रमाणको घटाकर, मुखके आधे प्रमाणके बर्गको जोड़ दे । इसप्रकार जो संख्या आवे उसे द्विगुणित करके पश्चात् चारका भाग दे । इसप्रकार जो लब्ध आवे, उसे शंखका क्षेत्रफल कहते हैं ॥ १३ ॥
=
योजन; विष्कंभरे योजन; बाहल्य योजन; र उत्सेध घनयोजनमें गोम्ही क्षेत्रका घनफल । ११९४३९३६ प्रमाण घनांगुलों में गोम्हक्षेत्रका घनफल |
इस सूत्र से लाकर उस क्षेत्रफलको मुखसे हीन उत्सेधसहित उत्सेधके चौथे भागसे गुणित करके उत्सेध घनयोजन लाकर और पूर्वोक्त गुणकार से गुणित करनेपर घनरूप क्षेत्र के प्रमाणघनांगुल हो जाते हैं ।
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१ सपहाचल परभागट्टियखेचे उप्पण्णगोहीए उपकरसोगाहणं X x उस्सेहजोयणस्स तिष्णिचउम्भागो आयामो, तदट्टभागो विक्खमो, विक्खमद्धं बाहलं । एदे तिण्णि वि परोप्परं गुणिय पमाणघणंगुले कदे एक्के कोडीए उणवीस लक्खा तेषालस हस्तणवस यक तीस रूवेहि गुणिदघणंगुला होंति । ११९४३९३६ । ति. प. प. १९५. २ आयामकदी मुहदलहीणा मुहबास अद्धत्रग्गजुदा । बिगुणा वेहेण हदा संखावत्तस्स खेत्तफलं ॥
त्रि. सा. ३२७.
३ सर्व॑पहाचलपरभागट्टियखेत्ते उप्पण्णवीइंदियस्स उक्करसोगाणा X x वारसजोयणायाम चउजोयणमुहसंखखेचफलं व्यासं तावत्कृत्वा वदनदलोनं मुखार्थवर्गयुतं । द्विगुणं चतुर्विभक्तं सनाभिकेस्मिन् गणितमाहुः ॥ एदे सुत्ते खेसफलमाणिदे तेहत्तरि उस्सेहजोयणाणि भवंति ७३ । आयामे मुहं सोहिय पुणरवि आयामसहिदमुहभजियं बाहढं णायन्त्रं संखायारट्ठिये खेते ॥ एदेण सुतेण नाहढं आणिदे पंच जोयणपमाणं होदि ५ । पुत्रमाणिद
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