Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[ १, ३, २. वणविहाणं वुच्चदे । तं जहा- सव्यखेत्तफलाणि चउगुणकमेण अवट्ठिदाणि ति कादूण तत्थ अंतिमखेत्तफलं चउहि' गुणिय रूवृणं काऊण तिगुणिदछेदेण ओवट्टिदे एत्तिय होइ ६५१३३६ । अधोलोगस्स सव्वखेत्तफलसमासो १०६३३६६ ।
संपहि उड्डलोगखेत्तफलमाणेमो । तत्थ सूईखेत्तफलं पुव्वविहाणेण आणिदे एत्तियं होइ ५३३५ । संपहि उवरिममद्धं पंचरज्जुविक्खंभुद्देसे खंडिय' तत्थ एगखंडं पुध छविय मज्झम्मि सेसखंडं उडुं फालिय पसारिदे सुप्पखेत्तं होदि । तस्स मुहवित्थारो एत्तिओ होदि ३१३ । तलवित्थारो एत्तिओ होदि १५६ १६ । मुहम्मि एगागासबाहल्लं', तलम्मि मुहप्पमाणमज्झम्मि वेरज्जुबाहल्लं, पुणो कमहाणीए गंतूग हेडिमदोकोणेसु एगागासवाहल्लं होदि । एदम्मि खेत्ते मुहवित्थारविक्खंभेण खंडिदे दोणि तिकोणखेत्ताणि एगमायद
विधान कहते हैं। वह इसप्रकार है-सभी क्षेत्रोंका घनफल चतुर्गुणितकमसे अवस्थित है, इसलिए उनमें अन्तिम क्षेत्रफलको चारसे गुणा करके और चारमेंसे एक कम अर्थात् तीनसे भाग देने पर घनफल ६५१३२६ इतना होता है । और अधोलोकके सभी क्षेत्रोंका घनफल १०६३६६ होता है।
अब चारों ओरसे मृदंगाकार ऊर्ध्वलोकरूप क्षेत्रका घनफल निकालते हैं। उसमें एक राजु चौड़े, सात राजु लम्बे और गोल आकारवाले सूचीरूप क्षेत्रका घनफल पहले अधोलोकमें कहे गये विधानसे निकालनेपर ५३३५ राजु इतना होता है। (इस सूचीको उर्ध्वलोकके मध्यभागसे निकालकर पृथक् स्थापन कर देना चाहिये । ) अब, लोकको मध्यलोकसे काटनेपर जो दो भाग पहले हुए थे उसमेंके ऊपरी अर्ध भागको, पांच राजु है विष्कम्भ जहांपर ऐसे ब्रह्मलोकके अन्तस्थित प्रदेशपर बीचसे खंडितकर उसमेंस एक खंडको पृथक स्थापनकर बचे हुए खंडको मध्यमें ऊपरसे नीचेतक फाड़कर पसारनेसे सूपाके आकारवाला क्षेत्र हो जाता है। उसके मुखका विस्तार ३३ इतना होता है। तथा तलविस्तार १५९६ इतना होता है । इस सूर्पक्षेत्रके मुख में मोटाई आकाशके एक प्रदेश प्रमाण है, और तलके मुख-प्रमाण मध्यभागमें दो राजु मोटाई है, पुनः क्रमसे हानिको प्राप्त होती हुई अर्थात् कम होती हुई इसी तलभागके दोनों कोनों पर आकाशके एक प्रदेश प्रमाण मोटाई है। इस सूर्पक्षेत्रको, मुखविस्तार-प्रमाण विष्कम्भसे खंडित करनेपर दो त्रिकोण क्षेत्र और एक आयतचतुरस्र
१ म प्रतौ ' चउ' इत्यपि पाठः ।
२ म प्रत्योः उवरिमधम्मद्धपंच-'. ' उवरिमधम्म पंच-'; अ-आ-क प्रतिषु ' उवरिममद्धपंच-' इति पाठः।
३ म २ प्रतौः 'खंडियं' इति पाठः । ४ म प्रत्योः 'बाहिल्ल' इति पाठः ।
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