Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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क्रम नं.
विषय
८४ उक्त तीनों प्रकार के असंयतसम्यग्दष्टि तिर्यचोंका नाना और एक जीवकी अपेक्षा सोपपत्तिक जघन्य और उत्कृष्ट काल ८५ उक्त तीनों प्रकार के संयतासंयत तिर्यचोंका काल ८६ पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तक तिर्यचोंका नाना और एक जीवकी
अपेक्षा जघन्य और उत्कृष्ट काल ३७१-३७२ ( मनुष्यगति ) ३७२-३८० ८७ मनुष्य, मनुष्यपर्याप्त और मनुष्यनी मिथ्यादृष्टि जीवोंके नाना और एक जीवकी अपेक्षा जघन्य और उत्कृष्ट कालका सोपपत्तिक निरूपण
८८ उक्त तीनों प्रकार के सासादनसम्यग्दृष्टि मनुष्योंका नाना एक जीवकी अपेक्षा जघन्य और उत्कृष्ट काल
८९ उक्त तीनों प्रकार के सम्यग्मिथ्यादृष्टि मनुष्योंका नाना और एक जीवकी अपेक्षा जघन्य और उत्कृष्ट काल ९० उक्त तीनों प्रकार के असंयतसम्यग्दृष्टि मनुष्यों का नाना और एक जीवकी अपेक्षा जघन्य और उत्कृष्ट काल
९१ उक्त तीनों प्रकार के मनुष्योंका संयतासंयत गुणस्थान से लेकर अयोगिकेवली तक काल निरूपण ९२ लब्ध्यपर्याप्तक मनुष्योंका नाना और एक जीवकी अपेक्षा जघन्य और उत्कृष्ट काल
कालानुगम-विषय-सूची
प्र. नं. क्रम नं.
( देवगति ) ९३ मिथ्यादृष्टि देवोंका नाना और एक जीवकी अपेक्षा जघन्य और और उत्कृष्ट काल
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विषय
९४ सासादन और असंयत सम्यग्दृष्टि देवोंका काल
९५ असंयत सम्यग्दृष्टि देवोंका नाना और एक जीवकी अपेक्षा जघन्य और उत्कृष्ट कल
३७१ ९६ भवनवासियों से लगाकर शतार सहस्रारकल्प तकके मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि देवोंका नाना और एक जीवकी अपेक्षा जघन्य और उत्कृष्ट काल
३६९-३७१
३७२-३७३
३७४-३७५
३७५-३७६
३७६-३७८
३७८
३७९-३८० ३८०-३८७
३८०
९७ घातायुष्क सम्यग्दृष्टि और देवों के काल में
मिथ्यादृष्टि विशेषता
| ९८ उक्त देवोंकी स्थिति बतलानेवाले कालसूत्रका और त्रिलोक प्रज्ञप्तिसूत्रका विरोध उद्भावन कर उसका परिहार ९९ भवनवासियों से लेकर सहस्रारकल्प तकके सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि देवोंका
( ५१ )
प्र. नं.
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३८१
39
३८२-३८४
३८३
३८४
काल १०० आनतकल्पसे लेकर नवग्रैवे यकों तक के मिथ्यादृष्टि और असंयत सम्यग्दृष्टि देवोंका नाना और एक जीव की अपेक्षा जघन्य और उत्कृष्ट कालका निरूपण ३८५-३८६ १०१ नौ अनुदिश और विजयादि चार अनुत्तर विमानोंके असंयतसम्यग्दृष्टि देवोंका नाना और एक जीवकी अपेक्षा जघन्य और उत्कृष्ट काल | १०२ सर्वार्थसिद्धि विमानवासी असंयत सम्यग्दृष्टि देवोंका नाना और एक जीवकी अपेक्षा काल निरूपण
२ इन्द्रियमार्गणा
१०३ एकेन्द्रिय जीवोंका नाना और एक जीवकी अपेक्षा जघन्य और उत्कृष्ट काल
३८५
३८६-३८७
३८७
३८८-४०१
३८८
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