Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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काल
षट्खंडागमकी प्रस्तावना क्रम नं. विषय
पृ. नं. क्रम नं. विषय १७२ उक्त कषाय तथा उक्त गुण
|१८३ परिहारविशुद्धिसंयमी प्रमत्त स्थानवाले क्षपक जीवोंकानाना
और अप्रमत्तसंयतोंका काल ४५२ और एक जीवकी अपेक्षा जघन्य
१८४ सूक्ष्मसाम्पराायक शुद्धिसंयतों.. और उत्कृष्ट काल
४४७-४४८
का काल १७३ कषायरहित जीवोंका काल १८५ अन्तिम चार गुणस्थानवर्ती निरूपण
४४८ यथाख्यातविहारविशुद्धिसंयतों७ ज्ञानमार्गणा ४४८-४५१
का काल
४५३ १७४ मत्यज्ञानी और श्रुताज्ञानी
१८६ संयतासंयत जीवोंका काल मिथ्यादृष्टि तथा सासादन
१८७ असंयत जीवोंका काल सम्यग्दृष्टि जीवोंका काल ४४८-४४९
९दर्शनमार्गणा ४५३-४५५ १७५ विभंगज्ञानी मिथ्यादृष्टि जीवों- |१८८ चक्षुदर्शनी मिथ्यादृष्टि जीवोंका का नाना और एक जीवकी
नाना और एक जीवकी अपेक्षा अपेक्षा जघन्य और उत्कृष्ट
जघन्य और उत्कृष्ट काल ४५३-४५४
४४९-४५० १८९ निर्वृत्यपर्याप्तकोंके समान १७६ विभंगझ नी सासादनसम्य
लब्ध्यपर्याप्तकोंमें चक्षुदर्शन ग्दृष्टियोंका काल
क्यों नहीं होता, इस शंकाका १७७ असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानसे
समाधान लेकर क्षीणकषाय गुणस्थान
१९० सासादनसम्यग्दृष्टि गुणतकके मतिज्ञानी, श्रुतज्ञानी
स्थानसे लेकर क्षीणकषाय और अवधिज्ञानी जीवोंका
गणस्थान तकके चक्षुदर्शनी काल
४५०-४५१ जीवोंका काल १७८ अवधिज्ञानी संयतासंयतोंके
१९१ मिथ्यादृष्टि गुणस्थानसे लेकर एक जीवसम्बन्धी उत्कृष्ट
| क्षीणकषाय गुणस्थान तकके कालकी विशेषताका निरूपण
अचक्षुदर्शनी जीवोंका काल १७९ प्रमत्तसंयत गुणस्थानसे लेकर |१९२ अवधिदर्शनी जीवोंका काल क्षीणकषाय गुणस्थान तकके
१९३ केवलदर्शनी जीवोंका काल मनःपर्ययज्ञानी जीवोंका काल
। १० लेश्यामार्गणा ४५५-४७६ १८० केवलज्ञानियोंका काल निरूपण
" १९४ कृष्ण, नील और कापोतलेश्या८ सयममागेणा ४५१-४५३ वाले मिथ्यादृष्टि जीवोंका १८१ प्रमत्तसंयत गुणस्थानसे लेकर
नाना और एक जीवकी अपेक्षा अयोगिकेवलीगुणस्थान तकके
सोदाहरण जघन्य और उत्कृष्ट संयतोंका काल
४५१-४५२ काल निरूपण, तथा तत्स१८२ प्रमत्तसंयत गुणस्थानसे लेकर
म्बन्धी शंकाओंका सयक्तिक अनिवृत्तिकरण गुणस्थान तक
समाधान
४५५-४५८ सामायिक और छेदोपस्थापना
१९५ तीनों अशुभलेश्यावाले सासा. शुद्धिसंयतोंका काल
छसयताका काल ..... ४५२ . दनसम्यग्दृष्टि जीवाका काल ४५८
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