Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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विषय
पृष्ठनं.
क्षेत्र
(३२)
षट्खंडागमको प्रस्तावना क्रम नं. विषय पृष्ठ नं. क्रम नं.
पृष्ठ ५३ लब्ध्यपर्याप्तपंचेन्द्रियतिर्यचौका ६५ पंचेन्द्रिय और पंचेन्द्रियपर्याप्त
७३) कोंके सभी गुणस्थानोंका क्षेत्र( मनुष्यगति) ७३-७७ निरूपण ५४ मिथ्यादृष्टि गुणस्थानसे लेकर
६६ लब्ध्यपर्याप्तक पंचेन्द्रिय जीवोंके
क्षेत्रका वर्णन अयोगिकेवली गुणस्थान तकके मनुष्य, मनुष्यपर्याप्त और
३ कायमार्गणा ८७-१०२ मनुष्यनियोंके क्षेत्रका वर्णन
६७ पृथिवीकायिक, अपकायिक, ५५ सयोगिकेवलीका क्षेत्र
तेजस्कायिक, वायुकायिक, तथा ५६ लब्ध्यपर्याप्तक मनुष्योंका क्षेत्र ७६
बादरपृथिवीकायिक, बादर(देवगति) ७७-८१ अप्कायिक, बादरतेजस्कायिक, ५७ मिथ्यादृष्टि आदि चारों गुण.
बादरवायुकायिक, बादरवनस्थानवर्ती सामान्यदेवोका क्षेत्र
स्पतिकायिकप्रत्येकशरीर और ५८ भवनवासी देवोंसे लेकर नव
इन पांच बादरोंके अपर्याप्त, ___ अवेयक तकके चारों गुणस्थान
सूक्ष्मपृथिवीकायिक, सूक्ष्म - वर्ती देवोंका क्षेत्र
अप्कायिक, सूक्ष्मतेजस्कायिक, ५९ भवनवासी, व्यन्तर
सूक्ष्मवायुकायिक, तथा इन
और ज्योतिष्क देवोंके शरीरकी
चार सूक्ष्मोंके पर्याप्त और ऊंचाईका वर्णन
अपर्याप्तक जीवोंके क्षेत्रका
निरूपण ६० नव अनुदिश और पांच अनुत्तर
६८ रत्नप्रभादि सातों अधस्तन तथा विमानवासी देवोंका क्षेत्र
उपरितन ईषत्प्राग्भार, इन आठों २ इन्द्रियमार्गणा
पृथिवियोंके आयाम, विष्कम्भ ६१ सामान्य एकेन्द्रिय, बादर एके
और बाहल्यका वर्णन न्द्रिय, सूक्ष्म एकेन्द्रिय और इन
६९ प्रथिवियों में सर्वत्र जल नहीं तीनोंके पर्याप्त तथा अपर्याप्तक
पाया जाता है इस लिए जलजीवोंके क्षेत्रोंका वर्णन
कायिक जीवोंका सर्वत्र पृथिवि६२ वैक्रियिकसमुद्धातगत एकेन्द्रिय
योंमें रहना संभव नहीं है, इस जीवोंका प्रमाण, तथा उनका
शंकाका समाधान क्षेत्रनिरूपण
८२ ७० बादर पृथिवीकायिक, बादर ६३ स्वस्थानस्वस्थान, वेदनासमु
अपकायिक, बादर तेजस्कायिक द्धात और कषायसमुद्धातगत
और बादर वनस्पतिकायिक बादरएकेन्द्रिय और बादरएके
प्रत्येकशरीरपर्याप्तक जीवोंका न्द्रियपर्याप्त जीवोंके क्षेत्रका
क्षेत्र-वर्णन निरूपण
८३ ७१ वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर ६४ सामान्य, पर्याप्त और अपर्याप्त
पर्याप्तकी जघन्य अवगाहनासे विकलत्रय जीवोंके स्वस्थानादि
द्वीन्द्रियपर्याप्तकी जघन्य अवगाक्षेत्रोंका निर्णय
८५, हना असंख्यातगुणी है, इस
८१-८७
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