Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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शंका-समाधान
( १९ )
रहता है । यही पृष्ठ ६६० पर समाधान करते हुए लिखा है । यह किस अपेक्षासे कहा है ! क्या समुद्धात पूर्व मूलशरीर से सम्बन्ध छूट जाता है ? ( नानकचंदजी, खतौली, पत्र १०-११-४१ ) समाधान - अपर्याप्त योगमें वर्तमान कपाटसमुद्घातगत सयोगकेवलीका पहले के शरीर के साथ सम्बन्ध नहीं रहता, ' इसका अभिप्राय यह लेना चाहिये कि उक्त अवस्थामें जो आत्मप्रदेश शरीर से बाहर फैल गए हैं, उनका शरीरके साथ सम्बन्ध नहीं रहता है । आत्मप्रदेशों के बाहर निकलनेपर भी यदि शरीर के साथ सम्बन्ध माना जायगा, तो जिस परिमाण में जीव- प्रदेश फैले हैं, उतने परिमाणवाला ही औदारिकशरीरको होना पड़ेगा । किन्तु ऐसा होना सम्भव नहीं, अतः यह कहा गया है कि कपाटसमुद्घातगत सयोगकेवलीका पहले के शरीर के साथ सम्बन्ध नहीं रहता । किन्तु जो आत्मप्रदेश उस समय शरीर के भीतर हैं, उनसे तो सम्बन्ध बना ही रहता है । इसी प्रकार किसी भी समुद्धातकी दशा में पूर्व मूलशरीरसे सम्बन्ध नहीं छूटता है । समुद्धात के लक्षणमें स्पष्ट ही कहा गया है कि मूलशरीरको न छोड़कर जीवके प्रदेशों के बाहर निकलनेको समुद्घात कहते हैं ।
पुस्तक २, पृ. ८०८
१० शंका - पृ. ८०८ पंक्ति १२ में सात प्राणके आगे दो प्राण और होना चाहिए, क्योंकि, सयोगीके अपर्याप्त अवस्थामें दो प्राण होते हैं । ( रतनचंदजी मुख्तार, सहारनपुर, पत्र ३४-४-१ ) यंत्र नं. ४७७ में प्राणमें ४-१ प्राण और लिखना चाहिए ( नानकचंदजी, खतौली, पत्र १०-११-४१ ) समाधान - इसका उत्तर वही है जो कि शंका नं. २ में दिया गया है
पुस्तक ३, पृ. २३
२ अ
११ शंका – २ की वर्गशलाका अ होगी यह शुद्ध ज्ञात नहीं होता, क्योंकि = २५६ होता है, और २५६ की वर्गशलाका ३ है, ४ नहीं ?
( नेमीचंदजी वकील, सहारनपुर, पत्र २४ -११--४१ )
का अर्थ है २ का २ के प्रमाण वर्ग । अत्र यदि हम अ को ४ के
२ अ - २ २ अ
२४
98
समाधान बराबर मान लें तो. २ = २= २ = २५६ × २५६ = ६५५३६, जिसकी वर्गशलाका ४ होगी । शंकाकारने भूल यह की
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२अ
२ अ
है कि २ = ( २ ) मान लिया है । किन्तु (अ) अ
= २
होता है । अतएव अनुवाद में उदाहरण
ऐसा नहीं है । प्रचलित पद्धतिके अनुसार २ रूपसे जो बात कही गई है उसमें कोई दोष नहीं है ।
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