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प्रश्नव्याकरणस्त्रे तदनन्तर स्थानाइमूत्रवाचनावेलाया पश्चचत्वारिंशदध्ययनेपु दशा ययनान्येचोपलब्धान्यासन्-तदुक्त स्थानाङ्गे
"पण्हा सागरणदसाण दसअझयणा पण्णत्ता । त जहा-उपमा , सखा', इसिभासियाइ', आयरियभासिया , महावीरभासियाइ', खोमगपसिणाइ , कोमलपसिणाई, अदागपसिणाई, अगुट्टपमिणाई', पाहुपसिणाई" | स्था० १०ठा ।
इदानी तु पूर्वोक्तानि अध्ययनानि विच्छेद गतानीति हेतो -पश्चानवपञ्चसत्र रात्मकदशाध्ययनानि समुपलभ्यन्ते।
तपः सयमाराधकाः सौधर्मादिदेवलोकेपु समुत्पद्यन्ते, उत्कृष्टतपासयमारा धकास्तरिमन्नेव भवे मोसमाप्नुवन्ति किन्तु येपामायुप्य सप्तलापरिमित होन ते कर्मक्षयाऽभावात् विजयादि निमानेषु समुत्पद्यन्ते, इति नरमाङ्गे अनुत्तरोपपातिकसूत्रे वर्णितम् । निबंध समुपलब्ध था। यह बात “से कि त पहावागरणाइ ? से लेकर " से त पण्हायागरणाइ " तक के इस नदीसूत्र के पाठ से पुष्ट होती है। इसके बाद स्थानागसूत्र के वाचनाकाल में पैंतालीस अध्ययनों में से केवल १० ही अध्ययन उपलब्ध रह गये। जैसा कि स्थानानसूत्र के इस पाठ से प्रमाणित होता है कि " पहावागरणदसाण दस अज्झयणा पण्णत्ता तजहा" इत्यादि । पर अब तो इस समय वे उपमा, सख्या, ऋषिभामित आचार्यभासित, महावीरभासित आदि दश अध्ययन भी उपलब्ध नहीं है, क्यों कि इनका विच्छेद हो चुका है। इसलिये पांच आस्रव और पाच सवर सबधी ये दश अभ्ययन ही उपलब्ध हैं।
नौमा अग जो अनुत्तरोपपातिक मत्र है उसमें ऐसा वर्णन किया कि तप सयमके आराधक जीव सौधर्म आदि देवलोकों में उत्पन्न होते हैं। (प्राय) तातपात से कित पण्हावागरणाइ? थी धन “सेत पण्हावागरणाई" સુધીના આ નદીસૂત્રના પાઠથી સિદ્ધ થાય છે ત્યારબાદ સ્થાનાગસૂત્રના વાચનકાળમાં પિસ્તાળીશ અવ્યયનેમાથી ફક્ત દસ જ ૫બ્ધ હતા તે વાતનું स्थानासूत्रनामा ४था प्रतिपाइन थाय छ-"पण्हावागरणदसाण दस अज्झयणा पण्णत्ता तनहा" त्याहि पर सत्यारे त ५मा, सध्या, ऋषिलासित, माया ભાસિત, મહાવીરભાસિત આદિ દશ અધ્યયન પણ ઉપલબ્ધ નથી, કારણકે તેને વિચ્છેદ થઈ ગયું છે તેથી પાચ આસવ અને પાચ સાવર સબધી આ દશ અધ્યયને જ ઉપલબ્ધ
અનુત્તરપપાતિકસૂત્ર નામનુ જે નવમુ અગ છે તેમાં એવું વર્ણન કરવામાં આવેલ છે કે તપ મયમની આરાધના કરનાર જીવ સધર્મ આદિ