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अपने नेतृत्व में सेना-संचालन किया । उन तमिलों ने अहंकार से कहा था, 'मनमानी बकनेवाला पोरसल बिट्टिगा केवल एक ढपोरशंख है। हमारी अर्थात् हमारे राज्य को इस तरह खिल्ली उड़ायी थी। वे ऐसे कामों में बड़े होशियार हैं। कन्नड़ प्रदेश के लोग चूड़ियाँ पहनकर बैठनेवाली औरतें नहीं। कंगन पहननेवाली कर्नाटक की स्त्रियाँ भी समय आने पर तलवार उठा सकती हैं, यह बताना हमारा कर्तव्य हो गया था। इस बार की जीत का श्रेय गंगराजजी को है। आज हम उन्हें 'महाप्रधान' की उपाधि से विभूषित करेंगे। कन्नड़-द्रोहियों के रक्त से कुछ कावेरी ने उन्हें उधर ही भगा दिया । उसका क्रोध शान्त करने के लिए द्रोहधर गंगराज ने शत्रु-रक्त से उसे नहला दिया । तलकाडु के कीर्तिनारायण का छोटा मन्दिर एवं इस वेलापुरी में अभी निर्मित विजयनारायाण का यह मन्दिर दोनों कन्नड़ प्रदेश के और पोय्सल राज्य की विजय के प्रतीक हैं। इसलिए हमने कहा कि यह दिन हमारे राज्य के इतिहास में एक बहुत ही मुख्य दिन है। दोनों ही वैष्णव-मन्दिर हैं। अब तक महाराज समेत राज्य-संचालन सूत्र जैनियों के ही हाथ है। अब राजा ने कार्य-कारण-संयोग से श्रीवैष्णव मत का अवलम्बन किया है। वह केवल वैयक्तिक विषय है। फिर भी एक तरफ जिनभक्त-प्रमुख्न गंगराज ने विजय प्राप्त करायी, तो दूसरी तरफ जिनभक्त शिरोमणि हमारी पट्टमहादेवी की श्रद्धा और भक्ति के फलस्वरूप श्रीवैष्णव संकेत देवमन्दिर निर्मित हुआ, यह हमारे राष्ट्र की मतसहिषाता का प्रतीक है। मत केवल वैयक्तिक होकर अपने-अपने घरों तक सीमित रहें, यह पर्याप्त है। उसकी अन्दरूनी बातों को लेकर रास्तों में या यहाँ-वहाँ उसकी चर्चा करना, धर्मद्रोह कहलाएगा। अभी हाल में यहाँ ऐस्या हो वातावरण पैदा हो गया था। परन्तु उस भगवान् की कृपा है, वह वैसे ही निवारित हो गया। चर्मकारों को मन्दिर-प्रवेश से मना कर देने के बहाने जैन धर्म को निन्दा करनेवाले मतान्धों को बाहुबली ने या भगवान केशव ने दोनों रूपों में दर्शन देकर चकित कर दिया। इससे हमें कुछ पाठ सीखना चाहिए। हमारे राष्ट्र को धर्म-सहिष्णुता सभी सार्वजनिक क्षेत्रों में स्पष्ट खुलकर दिखाई देनी चाहिए। इसमें ऊँच-नीच नहीं। भगवान के सामने सब बरावर हैं।''
"तलकाडु पर जीत एक मुख्य विषय होने पर भी, हमें यह नहीं सोच लेना चाहिए कि हम शत्रु संकट से पार हो गये । हमसे भी बड़े साम्राज्य की स्थापना करके वैभव के साथ राज्य करनेवाले चालुक्यचक्रवर्ती बिना कारण यों ही हम पर कुछ ही गये हैं। एक समय था कि जब पोयसल उनके लिए प्राण तक न्योछावर करने को तैयार थे। आज उन्हीं पोय्सलों पर हमला करने चालुक्यचक्रवतीं बारह सामन्तों को उकसाकर युद्ध की तैयारी करने में लगे हैं। उन बारह सामन्तों के गुप्तचर इस भीड़ में पकड़े गये हैं और वे इस वक्त कैद में हैं। इसलिए विरुद्ध धारण के इसी शुभ अवसर पर भावी जैत्रयात्रा का भी निर्णय करेंगे। तरसों दशमी बृहस्पतिवार के दिन हमारी सेना राजधानी
घट्टमहादेवी शान्तनः : भाग चार :; 41