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जैनागम स्तोक संग्रह ११ उर्द्ध चढे सो गुडल वायु १२ बाजिन्त्र जैसे आवाज करे सो गुजा वायु १३ वृक्षो को उखाड़ डाले सो झञ्ज (प्रभञ्जन) वायु १४ संवर्तक वायु १५ घन वायु १५ तनु वायु १७ शुद्ध वायु ।
इनके सिवाय वायु काय के अनेक भेद है । वायु के एक फड़के में भगवान ने असख्यात जीव फरमाये है । एक पर्याप्त की नेश्राय से असख्यात अपर्याप्त है। बुले मुह बोलने से, चिमटी बजाने से, अगुलि आदि का कड़िका करने से, पङ्खा चलाने से, रेटिया कातने से, नली मे फेंकने से, सूप (सुपड़ा) झाटकने से, मूसल के खांड़ने से, घंटी बजाने से, ढोल बजाने से, पीपी आदि बजाने से, इत्यादि अनेक प्रकार से वायु के असख्यात जीवो की घात होती है। ऐसा जान कर वायु काय के जीवो की दया पालने से जीव इस भव मे व पर भव में निराबाध परमसुख पावेगा। वायुकाय का आयुष्य जघन्य अन्तर्महूर्त का, उत्कृष्ट तीन हजार वर्ष का। वायु काय का संस्थान ध्वजा-पताका के आकार है । वायु काय का "कुल" सातलाख करोड़ जानना ।
वनस्पति काय वनस्पति काय के दो भेद १-सूक्ष्म, २ बादर ।
सूक्ष्म :-सर्व लोक में भरे हुए है। हनने से हनाय नही, मारने से मरे नही, अग्नि से जले नहीं, जल में डूबे नही, आँखो से दीखे नही, व जिसके दो भाग होवे नही, उसे सूक्ष्म वनस्पति काय कहते है। बादर :-लोक के देश में भरे हुए है, हनने से हनाय, मारने से मरे, अग्नि मे जले, जल में डूबे, आँखों से दीखे व जिसके दो भाग होवे, उसे वादर वनस्पति काय कहते है। वनस्पति काय के दो भेद : १ प्रत्येक, २ साधारण ।