Book Title: Jainagam Stoak Sangraha
Author(s): Maganlal Maharaj
Publisher: Jain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar

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Page 571
________________ भाषा-पद और मिन भाषा के ४०६३ बोल. तथा व्यवहार भाषा के समुच्चय जीव और १६ दण्डक एव २०x२३६=४७८० बोल, कुल मिल कर. २१७४६ बोल एक वचनापेक्षा और २१७४६ वहु वचनापेक्षा, कुल ४३३९८ भागा भाषा के हुवे। (१०) भाषा के पुद्गल मुह मे से निकलते जो वे भेदाते निकले तो रास्ते मे से अनन्त गणी वृद्धि होते २ लोक के अन्त भाग तक चले जाते है, जो अभेदाते पुदगल निकले तो सख्यात योजन जाकर [विध्वस] लय पा जाते है। (११) भाषा के भेद भेदाते पुद्गल निकले । वो ५ प्रकार से (१) खण्डा भेद-पत्थर, लोहा, काष्ट आदि के टुकड़े वत् (२) परतर भेद-अबरख के पुडवत् (३) चूर्ण भेद-धान्य कठोल वत् (४) अगुतडिया भेद-तालाव की सूखी मिट्टी वत् (५) उक्करिया भेदकठोल आदि की फलीयाँ फटने के समान इन पाचो का अल्पबहुत्वसब से कम उक्करिया, उनसे अणतडिया अनन्त गुणा, उनसे चूर्णिय अनन्त गुणा, उनसे परतर अनन्त गुणा, उनसे खण्डाभेद भेदाते पुद्गल अनन्त गुणा। (१२) भाषा पुद्गल की स्थिति ज० अ० मु० की। (१३) भाषक का आन्तरा ज० अ० मु०, अनन्त काल का ( वनस्पति मे जाने पर )। (१४) भाषा पुद्गल काया योग से ग्रहण किये जाते है। (१५) भाषा पुद्गल वचन योग से छोडे जाते है । (१६) कारण-मोह और अन्तराय कर्म के क्षयोपशम और वचन योग से सत्य और व्यवहार भाषा बोली जाती है। ज्ञानावरण और मोहकर्म के उदय से और वचन योग से असत्य और मिश्र भापा बोली जाती है। केवली सत्य और व्यवहार भाषा ही बोलते है । उनके चार घातिक कर्म क्षय हुए है। विकलेन्द्रिय केवल व्यवहार

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