Book Title: Jainagam Stoak Sangraha
Author(s): Maganlal Maharaj
Publisher: Jain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar

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Page 585
________________ खेताणु-वाई ५६७ प्रतर के बीच में ) देव गमनागमन के समय और जीव चक्कर ऊर्ध्व लोक मे तथा तीर्छ लोक जाते गमनागमन के समय स्पर्श करते हैं। अध तिर्यक् लोक (५ ) अधो-तीर्छ लोक मे भी दोनो प्रतरों को चव कर जाते __ आते जीव स्पर्शते है। ऊर्ध्व अध तिर्यक् लोक (६) तीनो ही लोक (ऊर्ध्व, अधो और तीळ लोक ) का देवता, देवी तथा मरणांतिक ममुद्रघात करते जीव एक साथ स्पर्श तिर्यच ) का करते है। २४ दण्डक के जीव उपरोक्त ६ लोक में कहाँ न्यूनाधिक है। इसका अल्पबहुत्व –२० बोल ( समुच्चय एकेन्द्रिय, ५ स्थावर के ६ समुच्चय, ६ पर्याप्ता, ६ असर्याप्ता १ समुच्चय और १ समुच्चय अल्पबहुत्व। ___ सब से कम ऊर्ध्व-तीर्छ लोक में, उनसे अधो तीछे लोक में विशेष उससे तीर्छ लोक मे असख्यात गुणा उनसे तीनो लोक में असख्यात गुणा उनसे ऊर्ध्व लोक मे असख्यात गुणा उनसे तीनो अधोलोक में विशेष। ३ बोल ( समुच्चय नारकी, पर्याप्ता और अपर्याप्ता नारकी का अल्पबहुत्व सव से कम तीन लोक मे । अधो तीजे लोक में असंख्यात, अधो लोक में असंख्यात गुणा)। ६ वोल-भवनपति के ( १ समुच्चय, १ पर्याप्ता, १ अपर्याप्ता एवं ३ देवी के ) सब से कम ऊर्ध्व लोक में उनसे ऊर्ध्व तीर्छ लोक मे असख्यात गुणा, उनसे तीनो लोक मे सख्यात गुणा उनसे अधे-तीर्छ लोक मे असख्यात गुणा उनसे तीर्छ लोक में असख्यात गुणा उनसे अधो लोक में असख्यात गुणा। ४ बोल (तिर्यचनी समुच्चय देव, समुच्चय देवी, पचेन्द्रिय, के पर्याप्ता) का अल्पबहुत्व सब से कम ऊर्ध्वलोक में उनसे ऊर्ध्व-तीर्छ

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