Book Title: Jainagam Stoak Sangraha
Author(s): Maganlal Maharaj
Publisher: Jain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar

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Page 596
________________ अजीव परिणाम ( श्री पन्नवणा सूत्र; १३ वां पद ) अजीव = पूद्गल का स्वभाव भी परिणमन का है इसके परिणमन के १० भेद है-१ बन्धन, २ गति, ३ सस्थान, ४ भेद, ५ वर्ण, ६ गन्ध, ७ रस, ८ स्पर्श, ६ अगुरुलघु और १० शब्द । बन्धन-स्निग्ध का बन्धन नही होवे, (जैसे घी से घी नही बंधाय) वैसे ही रुक्ष (लखा) रुक्ष का बन्धन नही होवे (जैसे राख से राख तथा रेती से रेती नही बन्धाय) परन्तु स्निग्ध और रूक्ष-दोनों मिलने से बन्ध होता है ये भी आधा-आधा (सम प्रमाण में) होवे तो बन्ध नही होवे विषम (न्यूनाधिक) प्रमाण मे होवे तो बन्ध होवे; जैसे परमाणु, परमाणु से नही वन्धाय परमाणु दो प्रदेशी आदि स्कन्ध से बन्धाय । ___गति-पुद्गलो की गति दो प्रकार की है, (१) स्पर्श करते चले (जैसे पानी का रेला और (२) स्पर्श किए बिना चले (जैसे आकाश में पक्षी)। ___संस्थान-(आकार) कम से कम दो प्रदेशी जीव अनन्ता परमाणु के स्ककन्धो का कोई न कोइ संस्थान होता है। इसके पांच भेद 0 परिमण्डल, 0 वट्ट, A त्रिकोन, । । चोरस, । आयतन । ___भद-पुद्गल पांच प्रकार से भेदे जाते है (भेदाते है) (१) खण्डा भेद (लकडी, पत्थर आदि के टुकड़े के समान (२) परतर भेद (अबरख समान पुड़) (३) चूर्ण भेद (अनाज के आटे के समान) (४) उकलिया भेद (कठोल की फलियां सूख कर फटे उस समान) (५) अणनूडिया (तालाब की सूखी मिट्टी समान) । ___ वर्ण-मूल रंग पॉच है-काला नीला, लाल, पीला, सफेद । इन रगो के सयोग से अनेक जाति के रंग बन सकते है । जैसे-बादामी, केशरी, तपखीरी, गुलाबी, खासी आदि । गंध - सुगन्ध और दुर्गन्ध (ये दो गन्ध वाले पुद्गल होते है)।

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